18 नवंबर 2016

हास नहीं' हो

सुमेरु छंद में गीतिका
मापनी- 1222 1222 12 
पदांत - नहीं' हो
समांत - आस

कभी अपघात का अहसास नहीं' हो
कभी प्रतिघात का उल्‍हास नहीं' हो

नहीं जीवन सफर में हो अकेला,
कभी जजबात का परिहास नहीं' हो

अगर तूफान आए साहिलों पर,
कभी इस घात का उपहास नहीं' हो  

कहीं जीवन जिगीषा की निशा हो,
कभी व्‍यतिपात का उपवास नहीं' हो

चलो ‘आकुल’ बदी का उत्‍स देखें,
कभी शह मात का इतिहास नहीं' हो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें