19 मई 2018

एक समय था (मुक्‍ता माला-2)

मुक्‍तक
एक समय था बेटी को देवी जैसा पूजा जाता था.
नामकरण में देवी शब्‍द को नाम सँग जोड़ा जाता था.
यक्ष प्रश्‍न ‘आकुल’ संवेदनशील न क्‍यों हम बेटी के प्रति,
पहले तो अब जैसा उनका भाग्‍य नहीं फोड़ा जाता था.  
मुक्‍तक
एक समय था जीवन मूल्‍य थे, घरों में थे आचार विचार.
थे समाज उन्‍नत बड़ों बुजुर्गों से पोषित संस्‍कार.
आज सुरक्षित नहीं घरों में बाल-वृंद क्‍या वृद्ध सभी,
हुई मानसिकता कुत्सित, मचा हुआ है हाहाकार.
मुक्‍तक
एक समय था छुआ-छूत के थीं अनुरूप व्‍यवस्‍थाएँ भी.
वर्णाश्रम आधारशिला थी, ऊँच-नीच की संस्‍थाएँ भी.
बदला समय, बदल कर देखीं आज व्‍यवस्‍थायें सत्‍ता ने,  
स्‍वार्थजनित लोगों से खत्‍म हो रहीं शेष आस्‍थाएँ भी.  
मुक्‍तक
एक समय था एक ध्‍येय था फिर हम सब आजाद हुए. 
कुछ खोया तब पाया हमने फिर हम सब आबाद हुए.
आज नशा आजादी का हिंसा की बलि चढ़ते हैं’ रोज,
नहीं सुरक्षित अपनों ही से फिर हम सब बरबाद हुए.
मुक्‍तक 
एक समय था नेहरू गाँधी तिलक लाल धरणिधर सारे.
ऊधम सिँह, आजाद भगत सिँह जैसे वीर धुरंधर सारे.
आजादी के शिखर पुरुष थे’ जंगल राज बना फिर देश है,  
फिरें विभीषण राम ढूँढ़ते, इत-उत हैं दशकंधर सारे.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें