सुनहुँ राम वानर सेना संग सीमा में घुस आये।
घोर निनाद देख चहुँदिस सेना नायक घबराये।।
कुंभकरण संग मेघनाद समरांगण स्वर्ग सिधारे।
बलशाली सेनानायक बलहीन हुए तब सारे।
रावण तक पहुँचा संदेसा मंदोदरी सकुचाई।
बोली हे लंकेश संधि में ही है बुद्धिमताई।।
लंका तो अब धूधू जल कर राख बनी है दशानन।
घर भेदी जब साथ राम के कौन बचै घर आँगन।।
इकलखपूत सवालख नाती खो रावण मुरझाया।
अब ना रण में और हानि प्रिय मैं या राम लुभाया।।
घर भेदी लंका ढायी खोये सुत भ्रात सुजान।
नारी फिर इतिहास बनी रामायण एक प्रमान।।
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