धरती पर उतर आया जैसे
सितारों का कारवाँ
आकाश में जाते पटाखों से
टूटते तारों का उल्कापात सा आभास
फूटता अमित प्रकाश
टिमटिमाते दीपों से लगती
झिलमिल सितारों की दीप्ति
दूर तक दीपावलियों से नहाई हुई
उज्ज्वल वीथियाँ
लगती आकाशगंगा सी पगडंडियाँ
एक अनोखा पर्व
जिसने पैदा कर दिया
पृथ्वी पर एक नया ब्रह्माण्ड
सूर्य, चन्द्र और आकाश दिग्भ्रिमित
सैंकड़ों प्रकाशवर्ष दूर
यह कैसा अनोखा प्रकाश !!!!
धरती पर उतर आया आकाश
सितारों को कैसे चुरा लिया
पृथ्वी ने मेरे आँगन से !!!
चाँद ने भी सुना कि
चुरा लिया है चाँदनी को !!!
और अप्रतिम सौंदर्य का प्रतिमान
बनी है धरा उसकी चाँदनी को ओढ़े !!!!
पीछे पीछे दौड़ा आया सूर्य
किसने किया दर्प उसका चूर !!!!
रात में फैला यह अभूतपूर्व उजास
नहीं हो सकता यह चाँद का प्रयास !!!
अहा ! चाँद का प्रतिरूप
धरती का यह अनोखा रूप
ओह ! पर्वों का लोक पृथ्वी है यह !!!
जहाँ हर ऋतु में नृत्य करती धरा
कभी वासंती, कभी हरीतिमा
कभी श्वेत वसना वसुंधरा
अथक यात्रा में संलग्न धरा,
तुम धन्य हो !!
अमर रहे !!
मेरे प्रकाश से भी कहीं ऊर्जस्वी
तुम्हा्रा यह पर्व,
मैं अनंत काल तक
प्रकाश दूँगा तुम्हें.....
चाँद बोला- मैं भी अनंत काल तक
शीतलता बिखेरूँगा......
धरा है, तो है हमारा महत्व
हलाहल से भरे रत्ननिधि की गोद में
नीलवर्ण स्वरूप और
प्रकृति से इतना अपनत्व !!!
आतप से तप कर
स्वर्णिम बना तुम्हारा अस्तित्व
शीतलता से बनी तुम धैर्य की प्रतिमूर्ति!!
दोनों ने एक स्वर में कहा-
हे ! धरा
प्रकृति के अप्रतिम स्वरूप को
अक्षुण्ण रखने के लिए
करता है यह आकाश गर्व
स्वात्वाधिकार है तुम्हें मनाने का
यह प्रकाश पर्व !!!!
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