कितने रावण मारे अब तक
कितने कल संहारे
मन के भीतर बैठे रावण को
क्या मार सका रे
तेरी काया षड् रिपु में
उलझी पड़ी हुई है
इसीलिए यह वसुंधरा
रावणों से भरी हुई है
नगर शहर और गली मोहल्ले
रावण भरे पड़े हैं
है आतंक इन्हीं का चहुँ दिस
कारण धरे पड़े हैं
कद बढ़ता ही जाता है
हर वर्ष रावणों का बस
राम और वानर सेना की
लम्बाई अंगुल दस
बढ़ते शीष रावणों के
जनतंत्र त्रस्त विचलित है
भावि अनिष्ट, विनाश देख
बल, बुद्धि, युक्ति कुंठित है
वो रावण था एक दशानन
हरसू यहाँ दशानन
नहीं दृष्टि में आते
राम विभीषण ना नारायण
क्या अवतार चमत्कारों की
करते रहें प्रतीक्षा
देती हैं रोजाना अब
हर नारी अग्नि परीक्षा
कन्या भ्रूण हत्या प्रताडना
नारी अत्याचार
रणचंडी हुंकारेगी
अब लगते हैं आसार
धरे हाथ पर हाथ बैठ
नर पुंगव भीष्म बने हैं
कहाँ युधिष्ठिर धर्मराज अब
पत्थर भीम बने हैं
होते शक्तिहीन नर
भूला बैठा है वानर बल
कब गूँजेगा जन निनाद
कब उमड़ेगा जनता दल
होंगे नर संहार प्रकृति
सर्जेगी प्रलय प्रभंजन
या नारी की कोख जनेगी
नरसिंह अलख निरंजन
ऐसा ना हो षड् रिपु से नर
निर्बल हो डर जाये
फिर कल का इतिहास
कहीं नारी के नाम न जाये
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