ज़िन्दगी तो इक कला है (गीतिका)
आधार छंद- मनोरम
मापनी - 2122 2122
पदांत- है
समांत- अला
ज़िन्दगी तो इक कला है.
मत समझ इसको बला है.
सिलसिला है ज़िन्दगी का,
मित्रता से ही चला है.
धैर्य से सोचेगा जब तू,
ज़िन्दगी ना वलवला है.
अनुभवों से सीख लेना,
मन अभी तो मनचला है.
मौत से करना न यारी,
मौत ने हरदम छला है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें