ऐ सावन ! तू कितना अब, तरसाएगा.
हे मेघ ! बिन बरसे क्या, चला जाएगा.
तू अगर बरसे, तो राहें, साफ होंगी,
फूलों को वहाँ, पवन फिर, बिखराएगा.
इक भी काँटा, यदि लगा, मेरे पिया
को,
यह सिर्फ, एक अहसास, हो रहा है क्यों,
चुनरी छूट, रही है और, आस भी अब,
बरखा लिए, चपला को भी तो, बुला तू,
सावन में मैं, ‘आकुल’ हूँ’ मेघ, ला
पानी,
सागर मे’री, आँखों से क्या, बहाएगा.
हे मेघ ! बिन बरसे क्या, चला जाएगा.
तू अगर बरसे, तो राहें, साफ होंगी,
वह दर्द मेरे, दिल को भी, सताएगा.
चपला बिना, क्या तू' वारिद, बन जाएगा.
संदेश मेरा, क्या पवन, पहुँचाएगा.
उपवन खिलेंगे, चमन भी, हरसाएगा.
सागर मे’री, आँखों से क्या, बहाएगा.
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