3 अगस्त 2018

ऐ सावन ! तू कितना अब, तरसाएगा (सुगम गीतिका)

ऐ सावन ! तू कितना अब, तरसाएगा.   
हे मेघ ! बिन बरसे क्‍या, चला जाएगा.

तू अगर बरसे, तो राहें, साफ होंगी,  
फूलों को वहाँ, पवन फिर, बिखराएगा.  

इक भी काँटा, यदि लगा, मेरे पिया को,
वह दर्द मेरे, दिल को भी, सताएगा.

यह सिर्फ, एक अहसास, हो रहा है क्‍यों,
चपला बिना, क्‍या तू' वारिद, बन जाएगा.

चुनरी छूट, रही है और, आस भी अब,
संदेश मेरा, क्‍या पवन, पहुँचाएगा.

बरखा लिए, चपला को भी तो, बुला तू,
उपवन खिलेंगे, चमन भी, हरसाएगा.

सावन में मैं, ‘आकुल’ हूँ’ मेघ, ला पानी,  
सागर मे’री, आँखों से क्‍या, बहाएगा.

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