गीत
रूठ कर चला गया,
शहर मिला नहीं मुझे.
पुकारता फिरा किया, मगर मिला नहीं मुझे.
मौत पर इंसान की
पुकारता फिरा किया, मगर मिला नहीं मुझे.
रुक गई चहल पहल
न शोरगुल न धूम है
बंद हैं दुकान सब,
न भीड़ ना हुजूम है.
सोच में बैठा हरेक
कोसता नसीब को
दर्द एक सा मिला
अमीर को गरीब को
मेरे शहर को लग गई
शायद बुरी नज़र कोई
देश के कोने कोने से
आ रहा था हर कोई.
गली गली से बहती थी
सरस्वती सुबह से शाम
हवा चली ऐसी कि उसके
स्वप्न उड़ गए तमाम.
काशी सा जो पुजा किया,
मंज़र मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर,......
रूठ कर चला गया, शहर,......
आदमी ही आदमी से
इस कदर डरा हुआ है
आदमी लगता है भूत
लुभाता था आतिथ्य से
कोई न भेद भाव था
अटूट थे रिश्ते बने
अनोखा इक लगाव था
रात दिन देखा किया,
आदर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर......
रूठ कर चला गया, शहर......
सुलग रहे हैं श्मसान
जल रहा हर स्वप्न है
मेरे शहर की हर गली में
एक लाश दफ़्न है.
जानवर सी हो गई गत
गार्डन सेवन वंडर्स, कोटा |
अंत्यकर्म है कि जैसे
लाश है शैतान की.
कितनों ने जन्म लिया, युगंधर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर......
कितनों ने जन्म लिया, युगंधर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर......
झालरों व शंख से
न तालियों से ही कहीं
लौटीं नहीं खुशियाँ मेरी
दीवालियों से भी कहीं
रात -दिन मेरे मगर
यह वक्त बपौती नहीं.
सोऊँ मैं कितना आँख भी
अब स्वप्न सँजोती नहीं.
रूठ कर चला गया,
शहर......
कहता न कोई घोषणा
करता है उसे लापता
लौट आएगा वो एक दिन
उन्हें भी है पता.
लौट आ मेरे शहर !!!
कोई तुझे भूला नहीं
गरीब के घर आजकल
जलता अभी चूल्हा नहीं.
अभी तो जल रहा दिया,
फ़जर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया शहर......
रूठ कर चला गया शहर......
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बहुत भावपूर्ण एवं मार्मिक चित्रण । बधाई मित्र ।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय. सान्निध्य पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्न हूँ.
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