गीतिका
छंद- निश्चल (मापनीमुक्त)
विधान- 23 मात्रा. 16, 7 पर यति. अंत गुरु लघु से.
पदांत- है इनसान
समांत- ईता
बुझा न पाया आग पलीता, है इनसान.
आज देश दुनिया में कोरोना आतंक
लगा हलाहल पी कर जीता, है इनसान.
देख विवश गलियारे सत्ता, के हैं भ्रष्ट,
गईं नौकरी बिल्कुल रीता, है इनसान.
मौतें बढ़ीं विवादित किस्से, बनते
नित्य,
निर्बल होता बिना सुभीता, है इनसान.
मन विचलित हो धर्म कर्म की, बने न
सोच,
नहीं आजकल पढ़ता गीता, है इनसान
जंग लगा तन मन रहता कुंठित स्तब्ध,
पारस कैसे बने न छीता है इनसान.
‘आकुल’ बचा हुआ मुँह को जो रखता बंद,
और फटे
को रहता सीता, है इनसान.
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