गीतिका
छंद - कुकुभ
पदांत- ई
समांत- लो
छोटी-छोटी खुशियों ढूँढ़ो, जीवन मिल-जुल कर जी लो ।
जीवन घुट्टी प्रेम पियाला, जितना हो भर कर, पी लो ।
जिनसे करते प्रेम, कमी हो, उनमें तो, कर अनदेखा,
शायद तेरी संगत उनको, बदले यह अनुभव भी लो ।
अनुशासन भोजन में रखना, स्वाद जीभ तक रहता है,
व्यर्थ जले या फैंका जाए, घी तो तड़का भर ही लो ।
जब तक हो गुरु ज्ञान नहीं तो, हीरा भी पत्थर ही है,
शिखर मिले संगत से समझो, वो तो है पारस छी लो ।
कह कर बुरा न बनना ‘आकुल’, मार समय की मिलती है,
भरता घाव समय ही तुम तो, केवल उधड़ा व्रण सी लो ।
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