3 फ़रवरी 2022

छोटी छोटी खुशियाँ ढूँढ़ो

गीतिका

छंद - कुकुभ 

पदांत- ई

समांत- लो

छोटी-छोटी खुशियों ढूँढ़ो, जीवन मिल-जुल कर जी लो ।

जीवन घुट्टी प्रेम पियाला, जितना हो भर कर, पी लो ।

        जिनसे करते प्रेम, कमी हो, उनमें तो, कर अनदेखा,

        शायद तेरी संगत उनको, बदले यह अनुभव भी लो ।

अनुशासन भोजन में रखना, स्‍वाद जीभ तक रहता है,

व्‍यर्थ जले या फैंका जाए, घी तो तड़का भर ही लो ।

        जब तक हो गुरु ज्ञान नहीं तो, हीरा भी पत्‍थर ही है,

        शिखर मिले संगत से समझो, वो तो है पारस छी लो । 

कह कर बुरा न बनना ‘आकुल’,  मार समय की मिलती है,

भरता घाव समय ही तुम तो, केवल उधड़ा व्रण सी लो ।

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