10 अक्तूबर 2020

मन आभारी अब तक है

गीतिका
छंद- रास
विधान- 22 मात्रा. 16, 6 पर यति, अंत 112 अनिवार्य. कुछ विद्वान् 8,8,6 पर यति को भी मान्‍यता देते हैं.
पदांत- अब तक है
समांत- आरी
क्‍या रूठे तुम याद तुम्‍हारी, अब तक है.
सोते जगते रात ग़ुज़ारी, अब तक है.
 
बैठ अकेले शून्‍य देखना, जी भर के,
एक अनोखी सी लाचारी, अब तक है.
 
वादे जो थे जीने की थी, चाह नहीं,
बिन तेरे जीवन की पारी, अब तक है.
 
चले हवा ‘तू यहीं कहीं है, यह लगता,
यादें इतनी हैं कि ख़ुमारी, अब तक है.
 
कोने-कोने घर में तेरी, है खुशबू,
हैं मायूस सभी दिल भारी, अब तक है.
 
जा न सके सँग यह मलाल कुछ, है हमको,
जीवन भी तो यह संसारी, अब तक है.
 
पहुँचाएँगे दूर क्षितिज तक, स्‍वर लहरी,
साथ रही तू मन आभारी, अब तक है.
-आकुल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें