6 मार्च 2023

निर्मल मन मेरा कर दो ( सरस्‍वती वंदना)

गीतिका
छंद- लावणी

हे वागीशा हंसवाहिनी,वीणापाणि माँँ सरस्‍वती।
श्‍वेत पुष्‍प चरणों में अर्पित, माँ स्‍वीकारो है विनती।

माते है साष्‍टांग दण्‍डवत, निर्मल मन मेरा कर दो,
बुद्धि प्रखर हो ऐसा वर दो, कभी न मुझसे हो गलती।

गति जीवन की हो निर्बाधित, चलती रहे लेखनी बस,
समय कठिन, हो कण्‍टकीर्ण पथ, साँँसे तुझे रहें भजती।

ना दुर्वचन कहे जिह्वा ना, आए ही दुर्भाव कभी,
जीवन हो निष्‍काम कर्म को, सदा समर्पित हो हस्‍ती।

सबको ही सद्बुद्धि मिले माँँ,  हे पद्मजा प्रगति श्रेया,
'आकुल' का मन हो जाए माँँ, गंगा-यमुना-सरस्‍वती।

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