गीतिका
छंद- गीतिका
मापनी- 2122 2122 2122 212
पदांत- यह समझ
समांत- अहले
साँँस चलती है समय से तेज पहले यह समझ।
चल सके तो वक्त के ही संग बहले यह समझ।
पंचतत्वों से बना अनमोल है यह तन मिला,
यह बचें इनके लिए हर कष्ट सह ले यह समझ।
यह अगर है संतुलित तो मान ले तू है सुखी,
शेष सुख तो हैं क्षणिक की मौज कहले यह समझ।
सूर्य चन्दा हैं अडिग चंचल युगों से है धरा
हैं तभी हलचल कदाचित् रोज दहले यह समझ।
इसलिए 'आकुल' का कहना मान धरती को सजा,
फिर हवाओं जंगलों से कर सुलह ले यह समझ।
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