गिरत पड़़त रामचंद्र, सीखत घुटमनियाँ ।
चलत देख बलिहारी, माँ लेय बलैयाँ ।।
हाथ लिए धनुष बाण, देखत
चितवन सौं ।
उछर उछर सुनत रहे, पग की
नुपरन कौं ।।
गिरत पड़़त रामचंद्र, सीखत
घुटमनियाँ
चलत देख बलिहारी, माँ लेय
बलैयाँ।।
हाथ लिए धनुष बाण, देखत
चितवन सौं।
उछर-उछर करत रहे, गोदी ले
मैयाँ ।।
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