गीतिका
छंद- मनहंस (वार्णिक)
मापनी- 112 121 121 211 212 (स ज ज भ र)
पदांत- भी सकता नहीं
समांत- ओल
सच जान के सच बोल भी सकता
नहीं।
तब जान लो दिल खोल भी सकता नहीं।
कम तोल के व्यवसाय जीवन में
किया,
हर वक़्त वो कम तोल भी सकता नहीं।
समभाव भी रखना जरूरत वक़्त
पे,
कटुता कहीं पर घोल भी सकता नहीं।
अपराध तो अपराध है इलज़़ाम
को
हर शख़्स के सर ढोल भी सकता नहीं।
नुकसान दे हर चीज को कम
आंकना,
जब चीज़ बंद टटोल भी सकता नहीं।
छंद- मनहंस (वार्णिक)
मापनी- 112 121 121 211 212 (स ज ज भ र)
पदांत- भी सकता नहीं
समांत- ओल
तब जान लो दिल खोल भी सकता नहीं।
हर वक़्त वो कम तोल भी सकता नहीं।
कटुता कहीं पर घोल भी सकता नहीं।
हर शख़्स के सर ढोल भी सकता नहीं।
जब चीज़ बंद टटोल भी सकता नहीं।
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