18 फ़रवरी 2019

जीता वही है जो सदा चलता रहा (गीतिका)

छंद- मधुवल्‍लरी        
मापनी- 2212 2212 2212
पदांत- रहा
समांत- अता

जीता वही है जो सदा चलता रहा.
हारा पिछड़ कर भी सदा बढ़ता रहा.

सीखा नहीं यदि ग़लतियों से आदमी,
नुकसान जीवन में सदा भरता रहा.

इतिहास नि:संदेह लिखता है वही,
जो सत्‍य की खातिर सदा मरता रहा.

जिसके लिए है बात की कीमत बड़ी,
वह धार पर तलवार की चलता रहा.

जीवन नहीं जिसमें नहीं संघर्ष है,
सोना खरा ही आग में तपता रहा. 

कहते गरजते हैं बरसते वे नहीं,
थोथा चना ही भाड़ में बजता रहा.

‘आकुल’ लिये आया जगत् में कर्ज तू,
यूँ ही नहीं तू गर्भ में पलता रहा.

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