छंद- पद्धरि
पीली चूनर को ओढ़ भूमि,
विधान- चार चरण सम मात्रिक
छंद,यति 8,8 या 10, 6 और अंत लघु गुरु लघु (121). त्रिकल के बाद त्रिकल आवश्यक ताकि लय न टूटे.
(लय राधेश्यामी चौपाई की
तरह)
पदांत- बसंत
समांत- आया
धरती पर अब, छाया बसंत.
जन जन को अब, भाया बसंत.
आते जब भी, त्योहार, पर्व,
हर उत्सव सँग, आया बसंत.
बदले भ्रमरों के, हाव भाव,
बुलबुल ने जब, गाया बसंत.
मनुहार करें, प्रेमिल पखेरु
मन पुलकित शरमाया बसंत.
पीली चूनर को ओढ़ भूमि,
झूमी तब हरसाया बसंत.
है धरा प्रदूषित, रोज-रोज
फिर भी मौसम, लाया बसंत
अब कहीं नही हो, तंत्र भ्रष्ट,
फैले ऐसी, माया बसंत.
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