1. मुक्तक
(दाँव-पेंच)
एक समय था चलन बटेरा, कुल्हड़, चट, पत्तल दोने का.
मथनी, गोल, डोलची, छाना, और खाट पर ही सोने का.
नई नई चीजों ने ले ली, इनकी जगह गाँव में घर-घर,
कोई फर्क नहीं पड़ता अब, इन के होने, ना होने का.
2. मुक्तक (बोरिया-बिस्तर)
एक समय था सुबह जागते, बिस्तर उठा दिया करते थे.
शौचादि से निवृत्त हो सीधे ही नहा लिया करते थे.
जब तक उठे’ न बोरिया बिस्तर, घर में बिस्तर लगे रहें अब,
बिस्तर ना उठने पर तब घर, माथे उठा लिया करते थे.
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