15 फ़रवरी 2019

यही सही श्रद्धांजलि होगी.. (गीतिका )

छंद- ताटंक
पदांत- बाकी
समांत- उनना

ख़त्म हुई अब सहनशीलता, क्या कहना-सुनना बाकी.
दहशतगर्दों के घर घुसकर, अब उनको धुनना बाकी.

अपने ही घर के लोगों को, ढाल बना छिप के बैठे,
बीच उन्हीं में से बढ़ के अब, बस उनको चुनना बाकी.

दें जवाब ऐसा वर्षों तक, रहें पीढ़ियाँ दहशत में,
जितना हो जल्दी हिसाब का, अब स्वरूप बुनना बाकी.

अपने घर परिवार देश से, नहीं उन्हें लेना देना,
नहीं सोचने का अब अवसर, ना पढ़ना-गुनना बाकी.

सोच सके ना काँप उठे अरि, दें सामान उसे ऐसा,
रह जाये खिसियानी बिल्ली, सा कुढ़ना कुनना बाकी.

दिल दिमाग निष्क्रिय हो जायें, उनको दंड मिले ऐसा,
रह जाये दीमक सा दर, घर, दीवारें घुनना बाकी.

लोहा भी है गर्म यही है, समय चोट अब करने का,
यही सही श्रद्धांजलि होगी, अवसर का भुनना बाकी.

कुनना- नोचना, खरोंचना
-आकुल

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