छंद- विधाता
न भाते हैं गरम कपड़े, न कंबल भी रजाई भी,
न मौसम
सर्द या तूफान, रोकेगा उसे ‘आकुल’,
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- है
समांत- आती
बसंती धूप जीवन में, सुखद संदेश लाती
है.
शरद ऋतु को विदा करने, लिए सौगात आती
है.
कभी हर पेड़ पर छाती, कभी घर की
मुँडेरों पर
कभी बागों बजारों में, बसंती धूप छाती
है.
पतंगे, कीट, भुनगे जब, हवा के संग
बहते हैं,
सुगंधित जब हवा तन से, लिपटती है
सुहाती है.
न भाते हैं गरम कपड़े, न कंबल भी रजाई भी,
कड़ाके की निकलती धूप, अब दिन में जलाती
है.
कहीं अँगड़ाइयाँ ले कर, जगें कलियाँ बगीचों
में,
भमर आने लगे कोयल, बसंती राग गाती
है.
नज़ारे सब दिशाओं में, दिखें रंगीन
सतरंगी,
हुई अब फाग की आहट, उमंगें भी जगाती है.
लिये
उद्देश्य जो बढ़ते, बसंती ऋतु बताती है.
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