छंद- विष्णु पद (सम मात्रिक)
विधान- 16, 10 अंत 2 गुरु (वाचिक)
समांत- आयें
चलो पेड़ पर अपना सा घर, एक बनायें
अब.
पंखी के जैसे रह के हर, पेड़ बचायें
अब.
अपनी रक्षा को जैसे सब, सुविधायें
जोड़ें,
वृक्षों की भी सुख सुविधायें, सभी
जुटायें अब.
डाल डाल पर खूब परिंडे, बाँधे पंखी
को,
मित्र बना कर उनके भी कुछ, नीड़
बसायें अब.
अभयारण्य बने पंखी-जन, विचरें सब
निर्भय,
करें न अतिक्रम वृक्ष सघन वन, हेतु
सजायें अब.
इक मचान के जैसे घर हों, उजड़ें नहीं
कभी,
ध्यान रखें दिन रात शत्रु को, मार
भगायें अब.
जंगल-जंगल बस्ती-बस्ती, वृक्ष
क्रांति आये,
वृक्ष प्रेम संदेश धरा का, सब
पहुँचायें अब.
कैसे दानव घोर प्रदूषण, का छायेगा
फिर,
स्वच्छ धरा के लिए स्वेद हम,
तनिक बहायें अब.
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