जब
बनो द्वार पर बंदनवार
जब
सावन भादों का शृंगार.
पुण्यावाचन
से शद्ध होते,
आचार-विचार
और संस्कार.
घर
में फैले आलोक, अशोक.
बनता
है बगीचा वृंदावन.
जहाँ
तुम हो वह नंदनकानन.
तुम
से ही मिले बल उपवन को,
जैसे
घृत शतावरी रसायन.
तुमसे
ही दशकुल वृक्ष, अशोक.
करते
हो वास्तुदोष को नष्ट
तुमसे
ही खत्म होते अरिष्ट.
तुम
सकारात्मक ऊर्जा से दो,
सुख
शांति औरवैभव उत्कृष्ट.
टिप्पणी- अगस्त 2018 के ई पत्रिका 'अनुभूति' में प्रकाशित.
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