14 फ़रवरी 2012

ढाई अक्षर प्रेम के

प्रेम, प्यार और प्रीत अढाई।
वक्त, भक्त, प्रभु, मि‍त्र अढाई।
धर्म, कर्म, वि‍द्या, भी ढाई।
जगत्पाल वि‍ष्णु भी ढाई।

ढाई कोस चले नि‍त काया।
स्वस्थ नि‍रोग रहे यह काया।
भगे मोह, मत्सर और माया।
स्वस्थ बदन में सुख सरमाया।

जागो जब तब सुखद सवेरा।
खोये समय न छँटे अँधेरा।
प्रेम, प्यार और प्रीत घनेरा।
उस घर में है स्वर्ग बसेरा।

आओ 'आकुल' प्रीत बढ़ायें।
दि‍न दूने हम मि‍त्र बनायें।
ढाई अक्षर प्रेम सि‍खायें।
दुनि‍या की यह रीत सि‍खायें।

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