१
सोच ले तो कुछ नहीं, कुछ भी कर सकता है इंसाँ
सोच ले तो आसमाँ में छेद भी कर सकता है इंसाँ
बस वो अपनी क़ाबिलीयत को तस्मीम करे 'आकुल'
सोच ले तो दरिया में समन्दर भी भर सकता है इंसाँ
2-
वक़्त के घावों पे वक़्त ही मरहम लगाएगा
वक़्त ही अपने परायों की पहचान कराएगा
वक़्त की हर शै का चश्मदीद है आईना
पीछे मुड़ के देखा तो वक़्त निकल जाएगा
3-
दुनिया यहीं खत्म नहीं हो जाती, क़लम तो उठा
पीछे देखने से क्या होगा हासिल, क़दम तो उठा
मंज़िल क्या कभी रुकने वाले को मिली है 'आकुल'
जो हुआ अच्छे के लिए हुआ है, क़सम तो उठा
4-
मैं या तू ज़िन्दा हैं, तो है ये ज़िन्दगी
जीना है तो ज़िन्दादिली से जी ज़िन्दगी
कब सब्र का बाँध टूट जाए क्या पता
कहीं मौत के आगे न हार जाए ज़िन्दगी
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