छंद- आनंदवर्धक
काम से बस काम रखता है न जो,
पथ सभी मिलते नहीं फूलों भरे,
दिन सदा रहते है’ रँग लहरी नहीं.
चौकसी ताले हों फिर भी चोरियाँ
चोर को ताले नहीं प्रहरी नहीं.
मापनी- 2122 2122 212
पदांत- नहीं
समांत- अहरी
झील हो ना मौन, वह गहरी नहीं.
है नहीं चंचल अगर शहरी नहीं.
जिंदगी उसकी कहीं ठहरी नहीं.
दिन सदा रहते है’ रँग लहरी नहीं.
चोर को ताले नहीं प्रहरी नहीं.
है छुआ उसने शिखर जो भी चढ़ा,
देख कर दिन, रात, दोपहरी नहीं.
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