9 अगस्त 2018

झील हो ना मौन, वह गहरी नहीं (गीतिका)

छंद- आनंदवर्धक  
मापनी- 2122 2122 212  
पदांत- नहीं
समांत- अहरी

झील हो ना मौन, वह गहरी नहीं.  
है नहीं चंचल अगर शहरी नहीं.

काम से बस काम रखता है न जो,
जिंदगी उसकी कहीं ठहरी नहीं.   

पथ सभी मिलते नहीं फूलों भरे, 
दिन सदा रहते है’ रँग लहरी नहीं.

चौकसी ताले हों फिर भी चोरियाँ  
चोर को ताले नहीं प्रहरी नहीं.

है छुआ उसने शिखर जो भी चढ़ा,
देख कर दिन, रात, दोपहरी नहीं.  

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