छंद-
हरिगीतिका
मापनी-
2212 2212 2212
2212
पदांत-
से
समांत-
आन
ध्वजदंड
पर लहरा रहा ध्वज अब बड़े ही शान से.
स्वाधीनता
के उन दिनों को याद कर अभिमान से.
कण-कण हुआ कृतकृत्य, जन-जन में बड़ा उत्साह था,
फहराया
है अब यह तिरंगा फिर उसी सम्मान से.
गूँजी है’ तब चारों दिशा, झूमा है’
तब धरती-गगन,
समवेत स्वर में राष्ट्रगा(न) गाया
है जब भी मान से
हमको रहेगा गर्व जीवन भर शहीदों का
करम,
उनसे ही’ तो हैं जी रहे हम आज इतमीनान
से.
हों कम दिलों में दूरियाँ, अब हौसले
कम हों नहीं, ,
अब देश ही सर्वोच्च हो, प्यारा
हो’ अपनी जान से.
हो खत्म अब आतंक, भ्रष्ट आचारण,
दुष्कर्म सब,
हैं बढ़ रहे खतरे समझ ना पा रहे क्यों
ध्यान से ,
कहती नहीं धरती कभी करके दिखाएगी सही,
विप्लव कभी ऐसा कि सोचा भी न हो ईमान
से.
आवाज दो हम एक हैं, अब ध्वज न हो
घायल कभी,
अंदर
भितरघाती से’ ना सरहद के’ बेईमान से.
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