छंद- महाभुजंग प्रयात
मापनी-
122 122 122 122 122 122 122 122
पदांत-
मिला है
समांत-
आरा
चला है जो’ जीवन में’ नेकी के’ पथ पर,
हमेशा उसी को सहारा मिला है.
पला है जो’ जीवन में’ तूफ़ाँ में’ रह कर,
पला है जो’ जीवन में’ तूफ़ाँ में’ रह कर,
हमेशा उसी को किनारा मिला
है.
नहीं शर्म जिसमें न पछतावा’
ही है,
वो’ अभिमान में
ही जिया है अकेला,
मिला है जो’ हरदम बदी की डगर पर,
मिला है जो’ हरदम बदी की डगर पर,
हमेशा मुसीबत का’ मारा मिला
है.
परिंदों की खुशियाँ कहाँ देखीं’ उसने,
कहाँ हैं भरी ऊँची’ उसने
उड़ानें,
उड़ाया है’ जीवन धुआँ बन के’ जिसने,
उड़ाया है’ जीवन धुआँ बन के’ जिसने,
हमेशा फ़ज़ीहत से’ हारा मिला
है.
न उपकार जो मानता मातृभू का
वो’ ख़ुशियों से’
रीता रहा है धरा पर,
नहीं चैन से मौत उसको मिली है
नहीं चैन से मौत उसको मिली है
न ही तन को’ पावन अँगारा
मिला है.
सफलता का’ कोई नहीं मापनी
है,
जो’ जितना चलोगे मिलेगी सफलता,
जो’ जितना चलोगे मिलेगी सफलता,
मुहब्बत है’ जिसकी भी’
किस्मत में’ ‘आकुल’,
उसी को
खुदा से इशारा मिला है.
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