मुक्तक लोक तरंगिनी छंद समारोह एवं समीक्षा 597 के समारोह की पोस्ट
शीर्ष पोस्ट- 3<>मुक्तक-लोक<>तरंगिनी छंद एवं समीक्षा समारोह-597<>सोमवार, 10 नवम्बर, 2025
ध्यानाकर्षण – प्रदत्त छंद मुक्तक लोक के संचालक / स्तंभकार डॉं गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ जी की नवीन खोज है। उक्त नवछंद के प्रारूप एवं छंद के नामकरण के सम्बन्ध में सभी सक्रिय सदस्यों के विचार सादर आमंत्रित हैं। छंद का नाम सदन की प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करेगा। मुक्तक लोक से जुड़े सभी कलमकारों का सहर्ष स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया एवं रचना मुक्तक लोक पटल को गौरवान्वित करेगा। जय जय माता शारदे जय जय मुक्तक लोक – छंदकार राकेश मिश्र
आज का चयनित छंद –मुक्तकंठा / मुक्ताहार आदि आदि
शिल्प विधान- दोहा मुक्तक+अर्ध रोला अर्थात दोहा मुक्तक की चार पंक्तियां और रोला
की दो पंक्तियां, कुल छः पंक्तियां । दोहा मुक्तक की चौथी पंक्ति का उत्तरार्ध ही
अर्धरोला का पहला चरण होगा (पांचवीं पंक्ति की शुरुआत)। दोहा मुक्तक का पहला शब्द / शब्द समूह ही छंद की अंतिम पंक्ति का समान्त होगा
(कुंडलिया की तरह)।
-- उदाहरण
मूल छंद
जीवन है रुकता कहाँ, देखो जिस भी ओर।
कर्तव्यों का बोझ है, पथ है बहुत कठोर।
समय कहाँ है देखता, सुबह-दोपहर-शाम,
जिसका ओर न छोर, क्षितिज सा है यह भी मन।
घूमे दूर सुदूर, कहाँ रुकता यह जीवन ।।
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कुछ तो बन्धन चाहिए, सम्बंधों में मित्र।
खाली शीशी इत्र की, महक बसे बिन इत्र।
हवा कहीं दिखती नहीं, बसी मगर हर ओर,
जिनसे बने चरित्र, बनेंगे कुछ तो दुश्मन।
ज्यों फूलों संग खार, चाहिए कुछ तो बंधन ।। -- डाँ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’, मुक्तक लोक
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अध्यक्ष को सम्बोधित करते हुए एवं निम्न शीर्षक सहित पटल पर प्रकाशित करें-
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मुक्तक-लोक<>तरंगिनी छंद एवं समीक्षा समारोह-597<>सोमवार, 10.11.2025
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समारोह अध्यक्ष- श्री राजकिेशोर मिश्र मोहम्मदी
संयोजक- छंदाकार श्री राकेश मिश्र
संचालक गण- श्री अश्वनी कुमार एवं सुश्री गीतांजलि गुप्ता
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अन्य उदाहरण
माता ही भुवनेश है, माता जगदाधार
अद्भुत है संवेदना, अद्भुत माँ का प्यार।
अद्भुत माँ का प्यार, और अद्भुत है नाता।
शत शत कोटि प्रणाम, तुम्हें है मेरी माता।। -- श्री राजकिशोर मिश्र मोहम्मदी मुक्तक लोक
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दिवस सुनहरे लग रहे , भीग रही है रात।
गर्मी से राहत मिली, निकल गई बरसात।
जलचर थलचर उभयचर, सुखी गगनचर वृंद,
लाई फिर हेमंत ऋतु , निर्मल सुखद प्रभात।।
निर्मल सुखद प्रभात , पवन-पग लगते ठहरे।
खिले कंज बहुरंग , देखकर दिवस सुनहरे।।--छंदकार श्री राकेश मिश्र, मुक्तक लोक
कहती प्रति क्षण तूलिका,मात्रा आयी रास।
मन को भाए मापनी, पंक्ति-पंक्ति में शोर--
जयकारा गुरुदेव का,यात्रा यह है खास।।
यात्रा यह है खास,छंद लगता मनभावन।
शिल्पकार का शिल्प,लगे उर को अति पावन।। -सुश्री वर्तिका अग्रवाला 'वरदा'
1. सुश्री सीमा मिश्रा संजसी; 2. श्री श्यामराव धर्मपुरीकर; 3. श्री दीप नारायण झा दीपक; 4. सुश्री सुधा राठौड़ 5. सुश्री कांति शुक्ला 6. सुश्री गीतांजलि गुप्ता; 7. श्री राम नरेश मिश्रा; 8. श्री अश्विनी कुमार; 9. सुश्री मंजुला चतुर्वेदी; 10. अल्का गुप्ता भारती; 11. कामिनी श्रीवास्तव ‘कीर्ति’ 12. डॉ. उमा शंकर शुक्ल शितिकंठ; 13. डॉ. राजकुमारी वर्मा; 14. सुश्री स्नेहप्रभा खरे; 15. श्री ओमप्रकाश गावशिंदे ओम् 16. सुश्री अंजू कपूर गांधी; 17. सुश्री प्रमिला श्री तिवारी; 18. सुश्री साधना हरीश; 19. सुश्री रेखा जोशी; 20. श्री रमानिवास तिवारी; 21. सुश्री मीनाश्री बडगवे; 22. सुश्री रामबाई अहिरवार ।






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