11 नवंबर 2025

नवछंद 'मुक्‍तकंठा /मुक्‍ताहार प्रतिष्‍ठापित

10. 11.2025 को आदरणीय छंदकार श्री राकेश मिश्र द्वारा हिंदी के साहित्‍यांगन मुक्‍तक-लोक में संयोजित तरंगिनी छंद समारोह एवं समीक्षा 597 में आपके मित्र का नवछंद #मुक्तकंठा / मुक्ताहार को प्रस्तावित कर एक नई ऊर्जा प्रदान की, जिसे समारोह अध्यक्ष श्री राज किशोर मिश्र मोहमदी जी ने उत्साहित हो छंद पर अपनी रचना से पुण्या:वाचन कर इसका स्वागत किया। आदर. मिश्र जी ने भी मुक्तकंठा छंद पर रचना से इसे दिशा दी। परिणामस्वरूप मुक्तक-लोक पटल पर इसे हाथों हाथ लिया गया और 27 विद्वज्जनों ने इसे लाइक्स एवं रचना रच कर समारोह को ऊर्जस्वी बना दिया। लोगों ने मेरे दिए गए नामकरण मुक्‍तकंठा / मुक्‍ताहार को ही स्वीकार किया। मुक्तक-लोक के संस्थापक अध्यक्ष और परमादरणीय प्रो. विश्वम्भर शुक्ल ने सशक्त रचना रच मुझे जो आशीर्वाद दिया है उसका आभारी रहूँगा। उन्होंने भी छंद का यही नाम रख अपनी नवछंद का अनुमोदन करते हुए स्वीकृति की मोहर लगाई। मुझे पूरा विश्वास है कि मुक्तक-लोक और अन्यत्र भी इसका प्रयोग कर इस नवछंंद को रचनाकार पोषण करेंगे। समारोह में उपस्थित सभी मनीषियों की भूूरिभूरि प्रशंसा एवं आभार जिन्होंने एक स्वर में इसे स्वीकार किया और अपनी लेखनी से इस छंद को प्रतिष्ठापित किया। 

मुक्‍तक लोक तरंगिनी छंद समारोह एवं समीक्षा 597 के समारोह की पोस्‍ट 

शीर्ष पोस्‍ट- 3<>मुक्‍तक-लोक<>तरंगिनी छंद एवं समीक्षा समारोह-597<>सोमवार, 10 नवम्‍बर, 2025

ध्यानाकर्षण – प्रदत्‍त छंद मुक्तक लोक के संचालक / स्तंभकार  डॉं गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ जी की नवीन खोज है। उक्त नवछंद के प्रारूप एवं छंद के नामकरण के सम्बन्ध में सभी सक्रिय सदस्यों के विचार सादर आमंत्रित हैं। छंद का नाम सदन की प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करेगा। मुक्तक लोक से जुड़े सभी कलमकारों का सहर्ष स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया एवं रचना मुक्तक लोक पटल को गौरवान्वित करेगा। जय जय माता शारदे  जय जय मुक्तक लोक – छंदकार राकेश मिश्र

आज का चयनित छंद –मुक्तकंठा / मुक्ताहार आदि आदि

शिल्प विधान- दोहा मुक्तक+अर्ध रोला अर्थात दोहा मुक्तक की चार पंक्तियां और रोला की दो पंक्तियां, कुल छः पंक्तियां । दोहा मुक्तक की चौथी पंक्ति का उत्तरार्ध ही अर्धरोला का पहला चरण होगा (पांचवीं पंक्ति की शुरुआत)। दोहा मुक्तक का पहला शब्द / शब्द समूह ही छंद की अंतिम पंक्ति का समान्त होगा (कुंडलिया की तरह)।

-- उदाहरण मूल छंद


जीवन है रुकता कहाँ, देखो जिस भी ओर।
कर्तव्यों का बोझ है, पथ है बहुत कठोर।
समय कहाँ है देखता, सुबह-दोपहर-शाम,
कर्म सदा ही जीतता, जिसका ओर न छोर।।
जिसका ओर न छोर, क्षितिज सा है यह भी मन।
घूमे दूर सुदूर, कहाँ रुकता यह जीवन ।।
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कुछ तो बन्धन चाहिए, सम्बंधों में मित्र।
खाली शीशी इत्र की, महक बसे बिन इत्र।
हवा कहीं दिखती नहीं, बसी मगर हर ओर,
हों ऐसे सम्बन्ध बस, जिनसे बने चरित्र।।
जिनसे बने चरित्र, बनेंगे कुछ तो दुश्मन।
ज्यों फूलों संग खार, चाहिए कुछ तो बंधन ।। -- डाँ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’, मुक्तक लोक
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अध्‍यक्ष को सम्‍बोधित करते हुए एवं निम्‍न शीर्षक सहित पटल पर प्रकाशित करें-
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मुक्‍तक-लोक<>तरंगिनी छंद एवं समीक्षा समारोह-597<>सोमवार, 10.11.2025
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समारोह अध्‍यक्ष- श्री राजकिेशोर मिश्र मोहम्‍मदी
संयोजक- छंदाकार श्री राकेश मिश्र 
संचालक गण- श्री अश्‍वनी कुमार एवं सुश्री गीतांजलि गुप्‍ता    
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अन्य उदाहरण


माता ही भुवनेश है, माता जगदाधार 
वंदन जिसका नित करें, जग के पालनहार।।
बिन देखे पहचान ले, बिन बोले हो बात,
अद्भुत है संवेदना, अद्भुत माँ का प्यार
अद्भुत माँ का प्यार, और अद्भुत है नाता।
शत शत कोटि प्रणाम,  तुम्हें है मेरी माता।। -- श्री राजकिशोर मिश्र मोहम्मदी मुक्तक लोक
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दिवस सुनहरे लग रहे , भीग रही है रात।
गर्मी से राहत मिली, निकल गई बरसात।
जलचर थलचर उभयचर, सुखी गगनचर वृंद,
लाई फिर हेमंत ऋतु , निर्मल सुखद प्रभात।।
निर्मल सुखद प्रभात , पवन-पग लगते ठहरे।
खिले कंज बहुरंग , देखकर दिवस सुनहरे।।--छंदकार श्री  राकेश मिश्र, मुक्तक लोक
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इस समारोह में विद्वज्‍ज्‍नों द्वारा प्रकाशित छंद मुक्‍ताकंठ / मुक्‍ताहार पर रचनायें- 
1
पावन लगता छंद नव, लिख कर करूँ प्रयास।
कहती प्रति क्षण तूलिका,मात्रा आयी रास।
मन को भाए मापनी, पंक्ति-पंक्ति में शोर--
जयकारा गुरुदेव का,यात्रा यह है खास।।
यात्रा यह है खास,छंद लगता मनभावन।
शिल्पकार का शिल्प,लगे उर को अति पावन।। -सुश्री वर्तिका अग्रवाला 'वरदा'
2
दुर्गम है अति जिंदगी,लेकिन नहीं थकान।
कर्मनिष्ठ मानव सदा , रहते हैं गतिमान।
अवरोधो को तोड़ कर, सुगम बनाते राह -
बढ़ते हैं निज लक्ष्य पर, बना नयी पहचान।
बना नयी पहचान, उम्र हो ज्यादा या कम।
करते सतत प्रयास, राह हो कितनी दुर्गम। --सुधा मिश्रा
3
रचना का स्वागत करें, नवल छंद साभार।
आकुल जी की तूलिका, रचे सृजन संसार।
कुंडलिया के वंश की, रच दी नयी प्रजाति-
अनुपम अद्भुत छंद नव, हुआ आज साकार।
हुआ आज साकार, सृजन का सुंदर सपना।
नवल सर्जना भव्य, छंद यह मनहर रचना।। - श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा, विदिशा म.प्र.
4
इस मनोहारी छंद के प्रणेता #डॉ_आकुल जी का हार्दिक अभिनंदन, बधाई और अनंत शुभकामनाएँ , इस छंद को पाकर #मुक्तक_लोक निहाल है! इस नवीन छंद का नाम यही रखें - 
मुक्तकंठा/ मुक्ताहार छंद
दर्शन दुर्लभ सूर्य के,अतिथि हो गई धूप,
लो,मौसम बागी हुआ,पल-पल बदले रूप,
किरणों पर प्रतिबन्ध है, रहना बदली ओट,
ढकी-मुँदी बैठी रहो , जाड़े के अनुरूप !
जाड़े के अनुरूप, भास्कर करता नर्तन,
घूँघट में हैं बन्द, धूप के स्वर्णिम दर्शन! -- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
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अन्‍य रचनाकार जिन्‍होंने लाइक्‍स किये एवं रचनायें प्रकाशित करीं- 

1. सुश्री सीमा मिश्रा संजसी; 2. श्री श्‍यामराव धर्मपुरीकर; 3. श्री दीप नारायण झा दीपक; 4. सुश्री सुधा राठौड़ 5. सुश्री कांति शुक्‍ला 6. सुश्री गीतांजलि गुप्‍ता; 7. श्री राम नरेश मिश्रा; 8. श्री अश्विनी कुमार;  9. सुश्री मंजुला चतुर्वेदी; 10. अल्‍का गुप्‍ता भारती; 11. कामिनी श्रीवास्‍तव ‘कीर्ति’ 12. डॉ. उमा शंकर शुक्‍ल शितिकंठ; 13. डॉ. राजकुमारी वर्मा; 14. सुश्री स्‍नेहप्रभा खरे; 15. श्री ओमप्रकाश गावशिंदे ओम् 16. सुश्री अंजू कपूर गांधी; 17. सुश्री प्रमिला श्री तिवारी; 18. सुश्री साधना हरीश; 19. सुश्री रेखा जोशी; 20. श्री रमानिवास तिवारी; 21. सुश्री मीनाश्री बडगवे; 22. सुश्री रामबाई अहिरवार । 

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