8 नवंबर 2025

बंंसीवारे की जय हो

 छंद- लावणी (सम मात्रिक)

विधान- मात्रा भार 30।16, 14 पर यति, अंत गुरु से ।

पदांत- की जय हो

समांत- आरे


लीलाधर, गोपालकृष्‍ण की, बंसीवारे की जय हो ।

कृष्णमुरारी, मनमोहन की, नंददुलारे की जय हो ।

 

पशु, खग, गोप, गोपियाँ सारे, भावविभोर हुए आकुल,

सुध बुध खो दे रसिक शिरोमणि, उस मनहारे की जय हो ।

 

कालियमर्दन, माखनचोरी, चीर हरण की लीला की,

इंद्रदमन, गो-संवर्धन श्रीगिरिवर धारे की जय हो ।

 

कंसखार जीता, दाऊ सँग, बने देवकीसुत कान्‍हा,

वसुदेव नंद जसुदा प्‍यारे, ब्रज के न्‍यारे की जय हो ।

 

मथुरा को ब्रज में जोड़ा ब्रज, को चौरासी कोस बना,

वृंदावन, गोकुल, मथुरा अरु श्रीब्रज सारे की जय हो

 

गोप, गोपिकाओं, बरसानेवारी राधे के प्रिय ने,

छोड़ा ब्रज में अस्‍त हुए उस ध्रुव तारे की जय हो  

 

‘जय श्रीकृष्‍ण’ कहो अरु जपना, ‘श्रीकृष्‍ण शरणं मम’ नित्‍य,

जय बोलो गिरिराज धरण की, जयकारे की जय हो।।

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