छंद-
गीतिका
अब घरों से आदमी निर्भय निकलना चाहिए.
है जरूरत देश में यह राज चलना चाहिए.
कर्म का प्रतिफल मिले इतना कि हर घर हो सुखी,
अब न बच्चा एक भी घर में मचलना चाहिए.
अब बग़ीचों में न कुचली जायें’ कलियाँ एक भी,
इस चमन में अब नहीं सैयाद पलना चाहिए.
बाढ़, सूखा, आपदा, भूकंप, जहरीली हवा,
अब प्रदूषण से न धरती को दहलना चाहिए.
लो चलो कश्मीर को अब फिर बनायें स्वर्ग सा,
अब बरफ केसर की’ गर्मी से पिघलना चाहिए.
मापनी
2122 2122 2122 212
पदांत-
चाहिए.
समांत-
अलना.
अब घरों से आदमी निर्भय निकलना चाहिए.
है जरूरत देश में यह राज चलना चाहिए.
कर्म का प्रतिफल मिले इतना कि हर घर हो सुखी,
अब न बच्चा एक भी घर में मचलना चाहिए.
अब बग़ीचों में न कुचली जायें’ कलियाँ एक भी,
इस चमन में अब नहीं सैयाद पलना चाहिए.
बाढ़, सूखा, आपदा, भूकंप, जहरीली हवा,
अब प्रदूषण से न धरती को दहलना चाहिए.
लो चलो कश्मीर को अब फिर बनायें स्वर्ग सा,
अब बरफ केसर की’ गर्मी से पिघलना चाहिए.
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