16 अगस्त 2019

आज न रूठे भाई-बहिना, और न कोई अपना

गीतिका
छंद- सार
पदांत- 0
समांत- अना

आज न रूठे भाई-बहिना, और न कोई अपना.
दृढ़ रहना है हमको मिलजुल, कर दर्दों को सहना.

मणिकांचन संयोग कहें या, चमत्‍कार है कह लें,
लद्दाख और कश्मीर सहित, पर्व आज है मनना.

राष्‍ट्रीय व सांस्‍कृतिक पर्व का, योग अनूठा है यह,
सर्वधर्म समभाव बनायें, यही चाहती विधना.  

आज नहीं यह स्‍वप्‍न इतिहास, बना आज भारत का.
मित्र बने दुश्‍मन भी अपना, धर्म गले है लगना.

हर दिन हैं त्‍योहार मनाते, अमर इसी से संस्कृति,
आज विश्‍व है चकित देख कर, भारत की संरचना.

रामचरित, गीता, पुराण वेदों ने महिमा गाई,
मातृभूमि, गुरु मात-पिता अरु राष्‍ट्र कभी मत तजना.

मानवता के लिए चलो सब, पर्व सहर्ष मनायें,
जियो और जीने दो सबको, आकुल का यह कहना.  

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