छंद-
जनक
विधान-
39 मात्रा .13 मात्रा (दोहा का विषम चरण)
के तीन चरण. अंत लघु गुरु या अंत रगण से.
कोई भी दो चरण तुकांत हों तो श्रेष्ठ.
के तीन चरण. अंत लघु गुरु या अंत रगण से.
कोई भी दो चरण तुकांत हों तो श्रेष्ठ.
पदांत-
हो
समांत-
आर्थ
कंटकीर्ण
यदि मार्ग है, हो न हो वह साथ हो, तू केवल बस पार्थ हो.
रुक
न पाया कभी समय, आये होंगे जभी प्रलय, हुआ अजेय तभी समय
पृष्ठभूमि
का भूल भय, चाहे भूत अनाथ हो, लेकिन सँग सत्यार्थ हो.
ज्ञानी
रहता मौन है, कहाँ सुखी वाचाल है, झुकता पहले कौन
है,
बालक
के सिर हाथ हो, नहीं हृदय में घात हो, और
न कोई स्वार्थ हो.
आये
रोते हुए सभी, राजा हो या रंक कहीं, कमल खिले बिन पंक नहीं,
अर्थ
लगे व्यवसाय में, लाभ मिले कुछ आय में, जो भी हो लाभार्थ हो
जीवन
का इक लक्ष्य हो, बस प्रारब्ध अलक्ष्य हो, यह जीवन का मर्म है,
सुख
उसमें निहितार्थ है, फल तेरा अन्यार्थ है, ध्येय अगर परमार्थ हो.
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