छंद-
विध्वंकमाला
मापनी
22 122 122 122
पदांत-
जिंदगी का
समांत-
अर
ताउम्र
होगा, असर जिंदगी का.
हँस
के पिया है, ज़हर जिंदगी का.
ऐसा
नशा है, पिये बिन, किसी से,
होता
कहाँ है, बसर जिंदगी का.
वो
बात है और, की है मुहब्बत,
देखा
किसी में, जिगर जिंदगी का.
यायावरी
से, न हासिल, हुआ है,
लेना
मजा तू, ठहर जिंदगी का.
ली
ठान जब है, पता है, मजा क्या,
कूटावपातों
,बग़ै’र जिंदगी का.
तूफान
आयें, न पतझड़, सतायें,
ऐसा
बसा क्या, शहर जिंदगी का.
‘आकुल’
कहे, यार चलना सँभल के,
काँटों
भरा है, सफर जिंदगी का.
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