4 अगस्त 2020

रक्षा बंधन मात्र एक व्‍यवहार नहीं

हो रक्षाबंधन मात्र एक, व्‍यवहार नहीं.
हो बहिन-भाईका ही अब यह, त्योहार नहीं.

है आज अलग इक सोच हमें, पैदा करनी,
पीटी होगी कल पर लकीर, हर बार नहीं.

इतिहास टटोलें भेजी रक्षा, की सौगातें,
अब बातें करें अनुग्रह की, अधिकार नहीं.

रक्षा सूत्र सभी पहनें मिल, कर हाथों में,
रक्षाबंधन मात्र एक व्‍यवहार नहीं
है आवश्यकता, इसका हो, परिहार नहीं.

बढ़े प्रदूषण सुविधायें हों, खत्‍म सभी अब,
हो हलचल प्रकृति विरुद्ध कहीं, स्‍वीकार नहीं.

वृक्षों को संरक्षित करने, सूत्र बाँधिए,
है नहीं असंभव पर दुश्कर, दुश्‍वार नहीं.

प्रहरी हों  घर में शांति दूत, बच्‍चों के अब,
हो नहीं कहीं भी बिन बुजुर्ग, परिवार नहीं.

हर स्वप्‍न स्वच्‍छ भारत का हो, पूरा आकुल',
श्रमदान करें अरु दान करें, व्यापार नहीं.

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