गीतिका
छंद- रसाल
विधान- प्रति पद २४ मात्रा, यति 10,14, पदारंभ-पदांत लघु-गुरु-लघु (जगण-121).
पदांत- कर सहेज
समांत- ईत
अभेद्य दुर्ग द्वार, भवितव्य जीत कर सहेज ।
बना सके
जीवन, को स्वर्ग प्रीत कर, सहेज ।1।
हवा बहे सदैव, बस सुख-शांति की चहुँ ओर,
बना सके
मिसाल उसे अभिजीत कर सहेज।2।
नहीं समय देता, सुअवसर बार-बार मित्र,
दिखा सके
कमाल तभी अभिनीत कर सहेज।3।
हुआ बहुत विनाश, अब न और हो विनाश,
निभा सके
निसर्ग, को अनुगृहीत कर सहेज।4।
दिखावटी ना हो, व्यवहार आचार-विचार,
बना वही भविष्य, उसे पुनीत कर सहेज।5।
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