14 जून 2023

अभेद्य दुर्ग द्वार भवितव्‍य जीत कर सहेज

 गीतिका

छंद- रसाल

विधान- प्रति पद २४ मात्रा, यति 10,14, पदारंभ-पदांत लघु-गुरु-लघु (जगण-121).
पदांत- कर सहेज
समांत- ईत 

अभेद्य दुर्ग द्वार, भवितव्य जीत कर सहेज ।

बना सके जीवन, को स्‍वर्ग प्रीत कर, सहेज ।1।

हवा बहे सदैव, बस सुख-शांति की चहुँ ओर, 

बना सके मिसाल उसे अभिजीत कर सहेज।2।

नहीं समय देता, सुअवसर बार-बार मित्र,

दिखा सके कमाल तभी अभिनीत कर सहेज।3।

हुआ बहुत विनाश, अब न और हो विनाश,

निभा सके निसर्ग, को अनुगृहीत कर सहेज।4।      

दिखावटी ना हो, व्‍यवहार आचार-विचार,

बना वही भविष्‍य, उसे पुनीत कर सहेज।5।   

 

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