गीतिका
छंद- गीता
प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं; 14,12 पर यति होती है , आदि में सम कल होता है ; अंत में 21 आता है और 5,12,19,26 वीं मात्राएँ अनिवार्यतः लघु 1 होती हैं।
पदांत- 0, समांत- अंद
छंद- गीता
प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं; 14,12 पर यति होती है , आदि में सम कल होता है ; अंत में 21 आता है और 5,12,19,26 वीं मात्राएँ अनिवार्यतः लघु 1 होती हैं।
जीवन जिसका सदा चला, वह ही जिए सानंद।
रुका मौत से भेंट हुई, बचा जिए स्वच्छंद। 1।
जो कर सके न जीवन में, उसका कर नहीं फिक्र।
जितना चले जीत उतनी, अमोल वचन आनंद ।2।
ठहरा सदा प्रदूषित जल, प्रकृति सरित् की प्रवाह,
रोको मत तुम बाँध बना, तट रह न जाएँ चंद।3।
तीर्थ पुज रहे नदी तटों, बाँधों इन पर न सेतु,
हो शायद तटतीर्थ कहीं, तब हो न जाएँ बंद।4।
प्रकृति रखे मानव ऐसी, गति हो न
जाए मंद।5।
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