मानव देह धरी प्रकृति सूँ मन सकुचो घबरायौ।
सच सुनकै कि देवकीनन्दन जसुमति पेट न जायौ।
सोच सोच गोकुल की दुनिया को समझहि परायौ।
सुन बतियन वसुदेव, दृगअन में घन उमरो बरसायौ।
कौन मोह जाऊँ गोकुल मैं कौन घड़ी यहाँ आयौ।
कछु दिन और रुके मधूसूदन चैन फिरहूँ न आयौ।
परम आत्मा जानै सब कछु ‘आकुल’ देह धरायौ।
कर्म क्रिया मानव गुण अवगुण चित्त तनिक भरमायौ।।
सच सुनकै कि देवकीनन्दन जसुमति पेट न जायौ।
सोच सोच गोकुल की दुनिया को समझहि परायौ।
सुन बतियन वसुदेव, दृगअन में घन उमरो बरसायौ।
कौन मोह जाऊँ गोकुल मैं कौन घड़ी यहाँ आयौ।
कछु दिन और रुके मधूसूदन चैन फिरहूँ न आयौ।
परम आत्मा जानै सब कछु ‘आकुल’ देह धरायौ।
कर्म क्रिया मानव गुण अवगुण चित्त तनिक भरमायौ।।
रूप सरूप स्वाद मधु फीका मानिक सुवरन हीरा।
ममता उघरि परै नैनन सौं तुच्छ ये श्याम सरीरा।
कूल कदम्ब की छाँव में सोचैं घनस्यामा यमु तीरा।
कौन काम आये गोकुल सौं कौन वचन भई पीरा।
आँखिन बन्द करी सुइ देखौ जसुमति विकल सरीरा।
सच कहौ जाय ना होई अनर्था को विधि मिटै न लकीरा।
भ्रमित करौ जग पुरसोत्तम ने ‘आकुल’ सह सब पीरा।
जसुमति जीवन गयौ वियोग में नन्द कौ जीव अधीरा।।
ममता उघरि परै नैनन सौं तुच्छ ये श्याम सरीरा।
कूल कदम्ब की छाँव में सोचैं घनस्यामा यमु तीरा।
कौन काम आये गोकुल सौं कौन वचन भई पीरा।
आँखिन बन्द करी सुइ देखौ जसुमति विकल सरीरा।
सच कहौ जाय ना होई अनर्था को विधि मिटै न लकीरा।
भ्रमित करौ जग पुरसोत्तम ने ‘आकुल’ सह सब पीरा।
जसुमति जीवन गयौ वियोग में नन्द कौ जीव अधीरा।।
माया सौं रचि रास निकुञ्जन मथुरा गोकुल कीन्हा।
धार उद्धार करौ भूतल ब्रज कंस नगरिया ही ना।
महाभारती कहै सकौ इन्हें योगी कृष्ण दम्भी ना।
पूर्णपुरुस पुरुसोत्तम भू पर मानव देह धरी ना।
माया ही सब कहौ सच लागे द्वयमत होई सकहि ना।
योग कृष्णा के ‘आकुल’ सब भेद समझि कोई ना।
कहा नन्द जसुमति के कृष्णा कहा देवकी नैना।।
सांख्य योग और कर्म दीक्षा गीता ज्ञान सुनायौ।
वसुदेव सुतम् नन्दनम् देवकी लुप्त कियो बिसरायौ।
बाललीला भई तलक ही वरनन पुस्तकअन में आयौ।
महाभागवत भी मूकहि है कहीं नहीं समझायौ।
कहा भयो जसुदा-वसुदेवा देवकी-नन्द ने पायौ।
सुखदु:ख थोड़ो बहु जो भी कै जीवन यूँ ही गँवायौ।
मानव देह धरी तो ‘आकुल’ मानव करम करायौ।
खबर पड़ै बिन रहे न जसुमति कृष्ण पेट नहीं जायौ।।
वसुदेव सुतम् नन्दनम् देवकी लुप्त कियो बिसरायौ।
बाललीला भई तलक ही वरनन पुस्तकअन में आयौ।
महाभागवत भी मूकहि है कहीं नहीं समझायौ।
कहा भयो जसुदा-वसुदेवा देवकी-नन्द ने पायौ।
सुखदु:ख थोड़ो बहु जो भी कै जीवन यूँ ही गँवायौ।
मानव देह धरी तो ‘आकुल’ मानव करम करायौ।
खबर पड़ै बिन रहे न जसुमति कृष्ण पेट नहीं जायौ।।
मानव देह धरी तो ही तो कुछ अवगुण गुण धारे।
लगे लांछन कीन्हीं किंसा भलै सभी उद्धारे।
प्रेम रास मोह माया सब मानव ही गुण न्यारे।
मानव कर्म करे धर्महि सौं जगहि चरण पखारे।
पूजौ सबनै हि मानहि भगवन भक्ति शब्द उच्चारे।
कवियन वक्ता श्रोता लेखक लक्षहि नाम पुकारे।
माया कहो कहो ‘आकुल’ कछु समझौ छन्द हमारे।
जब जब संकट भूपर आयौ प्रभु मानव देह पधारे।।
लगे लांछन कीन्हीं किंसा भलै सभी उद्धारे।
प्रेम रास मोह माया सब मानव ही गुण न्यारे।
मानव कर्म करे धर्महि सौं जगहि चरण पखारे।
पूजौ सबनै हि मानहि भगवन भक्ति शब्द उच्चारे।
कवियन वक्ता श्रोता लेखक लक्षहि नाम पुकारे।
माया कहो कहो ‘आकुल’ कछु समझौ छन्द हमारे।
जब जब संकट भूपर आयौ प्रभु मानव देह पधारे।।
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