8 अगस्त 2012

सावन जाने को है

अब तो हो मेहरबान मेघ, सावन जाने को है 
गर्मी से राहत दो मेघ, सावन जाने को है

छिट-पुट वर्षा, बूँदा-बाँदी, हरदम उमस बढ़ाती
निर्मल जल की चाहत, अधरस अलस जगाती
मेघ फटे, घनघोर कहीं, कहीं है बाढ़ सताती
वर्षा कहीं-कहीं जाने क्‍यों ढेर कहर बरपाती
तकता मेरा शहर मेघ, सावन जाने को है
कुछ घन लाओ संग मेघ, सावन जाने को है।

ताल तलाई भर जाओ, कुँओं के सोत जगाओ
वर्षा पर निर्भर है खेती, खेत-खेत भर जाओ
सूखी जाए ना रुत ढेरों आने को त्‍योहार
ढोल नफीरी चंग संग गाते हैं मेघ मल्‍हार
छाओ  नभ पर मेघ, सावन जाने को है
दो गरज गरज संदेश मेघ, सावन जाने को है।
मानव प्रकृति है हमसे, गलती बहुत हुई है
जल संचय, वृक्षारोपण ना कर, सख्‍ती बहुत हुई है
पर्यावरण, सघन वन कारण, अनपढ़ आबादी है
खेती पर वर्षा निर्भरता, रूढ़ीवादी है
इस कारण नहीं सजा मेघ, सावन जाने को है
इक मौका दो और मेघ, सावन जाने को है

लेंगे हम संकल्‍प बनेंगे, जागरूक और शिक्षित
निर्मित घर घर कर देंगे, धरती पर एक परीक्षित
अकर्मण्‍य अजगरवृ‍त्ति को‍ खत्‍म करायेंगे
सहज सुलभ हो निर्भरता का पाठ पढ़ायेंगे
नन्‍दन कानन होगी मेघ, सावन जाने को है
 धरा रहेगी ॠणी मेघ, सावन जाने को है।

कोटा, 8-8-2012

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