27 सितंबर 2018

नोट-वोट के चले चुनावी दंगल देखे भाले (गीतिका)

छंद- सार
समांत/तुकांत- आले

नोट-वोट के चले चुनावी, दंगल देखे भाले.
वही’ समीकरण जात-पाँत की, मुँह पर सबके ताले.

पूँजीपति हो या निर्धन हो, आफत है दोनों की,
एक नोट से एक वोट से पिसते बैठे ठाले.

अब तक ना आया पटरी पर, जनता का जन जीवन,
मिलीभगत से होते देखें, नये-नये घोटाले.

नोटबंदी, स्वच्छ भारत अभियान और आरक्षण,
दुष्कर्मों की घटनाओं ने, अपने ही घर बाले.

स्वत: घास की तरह समस्या, एक-एक कर उगती,
खुद सरकार गलतियाँ करती अरु विपक्ष पर टाले.

सीमा पर नित नये पैंतरे दुश्मन जब अजमाता,
अनदेखा करते हैं सैनिक, रिसते अपने छाले.

गजब जिंदगी देख रहे हैं, खेल निराला तेरा,
हे ईश्वर अब चमत्कार कर, तू ही देश बचाले

25 सितंबर 2018

चूल्‍हे की रोटी (गीतिका)


छंद- विष्‍णुपद
विधान- 16, 10 अंत गुरु वर्ण से
पदांत- चूल्‍हे की रोटी
समांत- आती

याद गाँव की अब भी आती, चूल्‍हे की रोटी.
माँ घर-भर को साथ खिलाती, चूल्‍हे की रोटी.
 
दे फटकारें राख झाड़ती, घी चुपड़े थोड़ा,
टुकड़े कर सबको दे जाती, चूल्‍हे की रोटी.

सी-सी करते आँख जोहती, खाते साग निरा,
खुशबू सौंधी भूख बढ़ाती, चूल्‍हे की रोटी.

गीली सूखी लकड़ी से जब, सुलगाती चूल्‍हा,
धूएँ में लिपटी भी भाती, चूल्‍हे की रोटी.

चौका- सानी करती लाती, कूएँ से पानी,
दुहती दूध ससमय बनाती , चूल्‍हे की रोटी.

रोज पोतती मिट्टी से माँ, चूल्‍हा नित पकता,
जीवन अग्निपथ है बताती, चूल्‍हे की रोटी.

भूली बिसरी माँ की यादें, अब भी जेहन में,
अब भी भूले नहीं भुलाती, चूल्‍हे की रोटी.

रिश्‍तों में जीते हैं हम सब (गीतिका)

छंद- सार   
विधान- 16, 12 पर यति अंत 22 वाचिक
समांत- आन
पदांत- बनाये रखना  

रिश्तों में जीते हैं हम सब, शान बनाये रखना.
जीवन में संघर्ष बहुत है, मान बनाये रखना.

हो सेवा व्‍यापार परिश्रम, चाह लाभ की रहती, 
लाभ-हानि की शंका का अनुमान बनाये रखना.

अपने और पराये में कब, फर्क दिखाई देता,
मित्र रूप में अरि न आ सके, ध्यान बनाये रखना.

जीवन में आएँगी राहें, कंटकीर्ण मत डिगना, 
पहुँचेगा गंतव्‍य नहीं मन, म्‍लान बनाये रखना.

सारे जहाँ से अच्‍छा रहे, भारत मेरा महान,
सत्‍यमेव जयते हो जग में, आन बनाये रखना.

23 सितंबर 2018

बना मन ऐसा इक संसार (गीतिका)


छंद- शृंगार  
विधान- आदि त्रिकल(12/21)-द्विकल(11/2),
अंत त्रिकल (21 अनिवार्य)
समांत/तुकांत- आर.

बना मन, ऐसा इक, संसार.
बस रहे सिर्फ प्यार ही प्यार.

हृदय में, रात दिन, हो उमंग,
बीत जायें, यूँ ही, दिन चार.

झूठ से, न नर्क, बनता स्वर्ग,
सत्य जीवन, का हो, आधार.

प्यार में न हो, छद्म, छल और,
कभी भी, कहीं नहीं व्यापार.

हो न, मतभेद और मनभेद,
भेदना, मन हो, कर मनुहार.