छंद- निश्चल
विधान- मात्रा भार- 23. 16, 7 पर
यति, अंत 21 से.
समांत/तुकांत- आर.
कुछ भी करने से पहले कर, सोच विचार.
इच्छा शक्ति प्रबल कर फिर दे, उसको
धार.
यश-अपयश के भी आसार हैं’, बनते क्योंकि,
संस्कारों से ही तो निभते, हैं व्यवहार.
लाभ-हानि के, ऊँच-नीच के, होते दौर,
श्रेष्ठ आदमी वह जो सबसे, पाता पार.
धर्म तुला पर तोल अटल है, जीवन-मृत्यु,
जो है धर्म वही कर बाकी, सब बेकार.
स्वाभिमान भी बना रहे हो, न्याय
सदैव,
जी जीवन तू जैसे जीते, थे
अवतार.
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