27 सितंबर 2018

नोट-वोट के चले चुनावी दंगल देखे भाले (गीतिका)

छंद- सार
समांत/तुकांत- आले

नोट-वोट के चले चुनावी, दंगल देखे भाले.
वही’ समीकरण जात-पाँत की, मुँह पर सबके ताले.

पूँजीपति हो या निर्धन हो, आफत है दोनों की,
एक नोट से एक वोट से पिसते बैठे ठाले.

अब तक ना आया पटरी पर, जनता का जन जीवन,
मिलीभगत से होते देखें, नये-नये घोटाले.

नोटबंदी, स्वच्छ भारत अभियान और आरक्षण,
दुष्कर्मों की घटनाओं ने, अपने ही घर बाले.

स्वत: घास की तरह समस्या, एक-एक कर उगती,
खुद सरकार गलतियाँ करती अरु विपक्ष पर टाले.

सीमा पर नित नये पैंतरे दुश्मन जब अजमाता,
अनदेखा करते हैं सैनिक, रिसते अपने छाले.

गजब जिंदगी देख रहे हैं, खेल निराला तेरा,
हे ईश्वर अब चमत्कार कर, तू ही देश बचाले

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