छंद-
कुंडल
पदांत-
चाहे क्यों
समांत-
अन
हवा संग
उड़ जाऊँ मैं, मन चाहे क्यों.
बन
जाये पंछी अब, यह तन चाहे क्यों.
जाने
कौन बसा है, मेरे भीतर जो,
इधर
उधर मैं भागूँ, अब अन-चाहे क्यों.
स्वप्न
दिखाये रातों, नींद न क्यों आये,
ऐसा कुछ मन, मेरा, मधुबन चाहे क्यों.
दीवानापन
छाया, है क्यों अब मुझको.
जाने
को अब, मन वृंदा-वन चाहे क्यों.
सब
हँसते हैं मेरी, देखें व्याकुलता,
तब
समझी मैं, पी को, यौवन चाहे क्यों .
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