26 मई 2019

कंटकीर्ण पथ पर चलें (दोहा गीतिका)

दोहा गीतिका
पदांत- 0
समांत- ईर

कंटकीर्ण पथ पर चलें, कहलाते हैं वीर.
जो चलते ले ध्‍येय वे, बनते सदा अमीर.

कब सूरज धरती रुकी, रुका न जीवन चक्र
प्राणवायु देता सदा, कभी न रुका समीर,

रह आचार-विचार से, कर आहार-विहार,
होता है वह ही सफल, खोये कभी न धीर

रोक सका कब आज तक, उम्र, मौत इनसान,
जीवन एक जिजीविषा, रहता मूर्ख अधीर.

समय रुका कब आज तक, रुकी न तन की साँस,
रुकना मत नादान तू, सहते रहना पीर

आँखों में सपने लिये, आता है इनसान
चलता है जो अग्निपथ, बनता वही वजीर.

‘आकुल’ चलो न चल सको लिखो बैठ कर खास,
बनो न बनो कबीर पर बनना नहीं फकीर.   

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