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28 सितंबर 2011
सान्निध्य सेतु: शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माँ दुर्गा
सान्निध्य सेतु: शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माँ दुर्गा: अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के शुरुआती नौ दिन भारतीय संस्कृति में नवरात्र के नाम से शक्ति की पूजा के लिए निर्धारित है इन दिनों शक्ति ...
18 सितंबर 2011
कडुवा सच: हिंद की शान है हिन्दी ...
कडुवा सच: हिंद की शान है हिन्दी ...: हिंद की शान है हिन्दी, मेरा अभिमान है हिन्दी देश हो, विदेश हो, हमारा स्वाभिमान है हिन्दी ! ... अभी अंजान है दुनिया, मेरी आँखों की फितरत से ...
16 सितंबर 2011
सान्निध्य सेतु: धड़कते समाचार
सान्निध्य सेतु: धड़कते समाचार: मैं तो हिन्दी दिवस पर कुछ लिखने वाला था पर,धड़कते दिल से सवेरे का अखबार पढ़ा और हिन्दी की हिन्दी हो गयी। पेट्रोल की कीमत फिर बढ़ ...
12 सितंबर 2011
गत एक वर्ष में राष्ट्रूभाषा हिंदी ने क्या खोया क्या पाया
14 सितम्बर हिन्दी दिवस है। आइये उस दिन को कुछ खास अंदाज़ में मनायें। संकल्प लें। हिन्दी की एक कविता लिखें,एक वाक्य लिखें,बच्चों को हिन्दी के बारे में कुछ बतायें,कहीं हिन्दी पर कार्यशालायें हो रही हैं,वहाँ थोड़ा समय दें,वहाँ जायें और सम्मिलित हों,हिन्दी की कोई पुस्तक पढ़ें,हिन्दी पर अपना चिन्तन करें कि हम कितनी हिन्दी जानते हैं,कम्प्यूटर पर यदि भ्रमण करना अच्छा लगता है,तो जाइये और हिन्दी के उद्भट विद्वानों को ढूँढ़िये और उनके बारे में पढ़िये। पर जो भी करिये यह दिन हिन्दी के नाम कर दीजिये,क्योंकि हमें हिन्दी को विश्व की पहली भाषा बनने का गौरव हासिल करना है,इसके लिए आप क्या कर सकते हैं करिये।
मैं 13 और 14 सितम्बर को हिन्दी सम्मेलन प्रयाग का अधिवेशन जो कि नाथद्वारा में आयोजित हो रहा है,सम्मिलित होने जा रहा हूँ। वहाँ मेरा यह लेख कहने पढ़ने या इस पर चर्चा करने को मिले या न मिले,पर उस दिन मैं ब्लॉग पर नहीं मिलूँगा इसलिए आइये आप मेरे वक्तव्य मेरी चर्चा को आप आज ही यहाँ अवश्य पढ़ें।
इस अधिवेशन में हिन्दी पर चर्चा का विषय है 'गत एक वर्ष में राष्ट्रभाषा हिन्दी ने क्या खोया और क्या पाया' इस विषय पर मेरा मानना है कि हिन्दी भाषा अपनी आस्था,अपनी निष्ठा खोती जा रही है,इसी पर मैं अपनी बात कहना चाहूँगा।
आंग्ल भाषा का एक शब्द है डी एन ए (डीऑक्सीरिबोनुक्यूलिक एसिड)यानि प्राणियों के शरीर में पाया जाने वाला रासायनिक गुणसूत्र,जो प्राणी के व्यक्तित्व,अस्तित्व और उत्पत्ति के सूत्र को स्थापित करने में वैज्ञानिकों की मदद करता है। जिस प्रकार कार्बन डेटा पद्धतिसे वनस्पति की उम्र और अस्तित्व के बारे में जानकारी मिलती है,उसी प्रकार डीएनए से प्राणी की। प्राणी का सूक्ष्म बाल हो या नाखून का एक टुकड़ा हो,दाँत हो या अस्थि का छोटा टुकड़ा,प्राणी के सम्पूर्ण व्याक्तित्व के बारे में जाना जा सकता है। विज्ञान इस बात को मानता है कि प्रकृति में प्रत्येक प्राणी का गुणसूत्र विद्यमान रहता है,कभी नष्ट नहीं होता और यही वज़ह है,आज मानव जाति ही नहीं सम्पूर्ण प्राणी जगत् और वनस्पाति जगत् संक्रमित है। जीवन चक्र में यही संक्रमण धीरे धीरे अपना विकराल रूप धारण करता हुआ प्रलय की ओर अग्रसर होता है और
फिर प्रकृति युग परिवर्तन का रास्ता प्रशस्त करती है।
संसार में प्रचलित सभी धर्मों में मनुष्य की मृत देह के अंत्यसंस्कार की अनेको विधियाँ प्रचलित हैं,उनका एक ही उद्देश्य है,मृत देह से फैलने वाले संक्रमण से शीघ्रतातिशीघ्र छुटकारा,लेकिन प्रश्न विचारणीय है कि हम कितना संक्रमण समाप्त कर पाते हैं। पंचतत्व में विलीन करने के लिए हमारे हिन्दू धर्म में उत्तर कर्म के प्रथम सोपान में अग्निदाह की परम्परा है,कहीं यह क्रिया तीसरे दिन सम्पन्न होती हैं,कहीं उसी दिन,कहीं दस दिन में,किन्तु सौ प्रतिशत भस्मीभूत नहीं हो पाती,यह सत्य है,विवाद या तर्क का विषय नहीं है। उसी से संक्रमण आज तक विद्यमान है और इसका प्रभाव मनुष्य की प्रकृति,मानव समाज,चराचर जगत् पर किसी न किसी रूप में दिखाई दे रहा है और हम उसे सुख दु:ख,वैर,वैमनस्य,विभिन्न प्रकार के रोग आदि के रूप में भोग रहे हैं और भोगते जायेंगे,इससे छुटकारा नितान्त दुरूह है,क्योंकि हमने चिन्तन,मनन,ध्यान,योग,धर्म के प्रति निष्ठा खोई है। स्वच्छन्दता के आनंद में हम इतने खो गये हैं कि जब हम तिल तिल स्वयं को खो रहे हैं,हम अंतर्मुखी हो गये हैं,हम अपने समाज अपने परिवार के प्रति धीरे धीरे निष्ठा खो रहे हैं,तो भाषा के प्रति निष्ठा यदि खो रही है तो कैसा आश्चर्य ।
यह आधार,इस विषय को अथवा इसकी चर्चा को आज के मूल विषय से मैंने इसलिए जोड़ा है कि आज हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी भी संक्रमण काल से गुजर रही है। हमें स्वत हुए 64 वर्ष हो गये किंतु 64 बार भी अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति समर्पित आंदोलन या अभियान हमने नहीं छेड़े हैं।
धड़कते समाचार:मैं प्रान्तीय भाषा का विरोधी नहीं,पर हिन्दी के विकास के लिए किसी को तो नीलकंठ बनना ही होगा। क्या आज हमें दूसरा भारतेन्दु मिल सकता है या दूसरा अन्ना जो हमें गांधीवादी तरीके से हमारे देश की एक मात्र भाषा हिन्दी के लिए आन्दोलन छेड़ सके? आज देश का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला और बड़ा अखबार कहलाने का दंभ भरने वाला भास्कर समूह यदि अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में भी हिन्दी का ही समाचार पत्र प्रकाशित करता तो आज वह गर्व से कहता कि हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र है भास्कर। अखबार अब व्या्वसायिक हो गये हैं, उन्हें साहित्य नहीं विज्ञापन चाहिए। जब समर्थ ही ऐसी कोशिशें नहीं करेंगे तो हमारी राष्ट्रभाषा का भविष्य कैसा होगा, अनुमान लगाया जा सकता है। आज समाचार पत्र जन जन के हाथों में जाता है, किन्तु साहित्य कितना होता है इसमें, सिवा विज्ञापनों की भरमार और हिंसक और व्यभिचार के समाचारों के? समाचार पत्र की चर्चा मैं इसलिए कर रहा हूँ कि उत्तर प्रदेश के प्रमुख समाचार पत्र अमर उजाला से 1993 से जुड़ा रहा था, हिन्दी वर्ग पहेली के माध्यम से, किंतु आज उस पत्र में वर्ग पहेली नहीं आती।
मैं हिन्दी की शब्द यात्रा का बटोही रहा हूँ । शब्द ब्रह्म के सुंदर स्वरूप अक्षर से आरंभ हुई मेरी हिन्दी के चहुँमुखी विकास की यात्रा में मेरी भावांजलि और 1993 से आरंभ किये यज्ञ की पहली आहुति मैंने दी और वह यज्ञ अभी भी अनवरत चल रहा है, और चलता रहेगा, क्योंकि मेरी इच्छा है कि मेरे रहते मेरी प्रिय भाषा हिन्दी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली पहली भाषा बन जाय और मैं गर्व कर सकूँ कि इसमें मेरा भी अवदान है, इस यज्ञ में मेरी भी समिधा की एक आहुति है।हिंद की शान है हिन्दी ...:हिंदी की सुरभि को सार्वभौम फैलाने वाले पुरोधा भारतेंदु हरिश्चन्द्र की पिछले दिनों 161वीं जयंति हमने मनाई है। निज भाषा के लिए सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देने वाले इस महामहोपाध्याय का नारा था ‘हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान’ विद्वत्समाज इसकी अपनी अपनी तरह से विवेचना,चर्चा करता है।
आज केवल इसी वाक्य,इस सूक्ति,इस नारे पर ही थोड़ी चर्चा कर मैं विराम चाहूँगा,क्योंकि हम हर वर्ष इस पुरोधा की जयंति मनाते हैं,हिन्दी के विकास के लिए संकल्प लेते हैं,किन्तु श्मसान में पैदा हुए क्षणिक वैराग्य की तरह श्मसान से बाहर आते ही हम फिर उसी माया-मोह,दुनियादारी में खो जाते हैं,यही हश्र हमारी हिन्दी का हुआ है।DIL ka RAJ: Hindi positions and plight:हम हिन्दुस्ता्न में हिन्दू,हिन्दी और हिन्दुस्तान तीनों को अलग अलग नज़रिये से देखते हैं,इसलिए आस्था खो रहे हैं। भारतेन्दु ने इन तीनो की जो विवेचना की थी वह कि,जो हिन्दी बोले वह हिन्दुस्तानी,जो हिन्दी बोले वो ही हिन्दू है,देश की पहचान हिन्दी हो,हिन्दू नहीं। हिन्दी है तो हिन्दू हैं और हिन्दी है तो हिन्दुस्तान है। अन्य देशों के लोग हिन्दू को नहीं,हिन्दी को जानते हैं,क्योंकि हिन्दुस्तान की पहचान वहाँ हिन्दू से नहीं,हिन्दी से है। हिन्दी-चीनी भाई-भाई। चीनी कौन? जो चीन के वासी हैं,हिन्दी कौन?हिन्दी वो,जो हिन्दुस्तान में रहते हैं। हिन्दी हैं---हिन्दी हैं हम,वतन है,हिन्दोस्ताँ हमारा---सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा। यहाँ पर भी हिन्दवासियों को हिन्दी कहा गया है।
हाड़ौती की एक कहावत है- ‘घर का जोगी जोगणा,आण गाँव का सिद्ध’विदेश में रह कर अपने देश की महत्ता का अहसास होता है और यही कारण है कि विदेशों मे वह न मुसलमान है,न सिख,न ईसाई,न गुजराती,न बंगाली,वहाँ वह सिर्फ हिन्दुस्तानी है,इसीलिए वहाँ हिन्दी को एक अहम स्थान प्राप्त है। पर हम अपने देश में हिन्दी के प्रति आस्था खो रहे हैं। हमारे यहाँ जब तक प्रान्तीय भाषाओं के वर्चस्व की बातें होंगी,हमारी हिन्दी अपनी वास्तविक जगह नहीं बना पायेगी। राजस्थान में राजस्थानी भाषा के लिए आंदोलन हो रहे हैं,लेकिन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की तुलना में राजस्थान हिन्दी में पिछड़ा हुआ है। राजस्थान में हिंदी जन जन में अपनी आस्था नहीं बना पाई है। यहाँ बाजारों में अशुद्ध हिंदी पढ़ने देखने को मिलती है, सरकारी गैर सरकारी महकमों में आंग्ल भाषा का वर्चस्व यथावत बना हुआ है। पहले दक्षिण में हिन्दी का अपमान हुआ, पिछले वर्ष महाराष्ट्र,विशेषकर देश की सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी मुंबई में इसकी अवहेलना,दंगे फसाद हुए। भाषावाद,प्रान्तीयतावाद,आरक्षण और सर्वोपरि आतंकवाद से हमको देश के प्रमुख मुद्दों के कारण हम हिन्दी के बारे में सोच ही नहीं पाते। इसी कारण अनेकों समस्यायें विकराल रूप ले रही हैं। पिछले साल से आज तक हम इन्हीं समस्याओं से जूझते रहे हैं। ।
पूरा देश हिन्दी के लिए एकजुट नहीं होगा तब तक हम अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी के लिए देख रहे सपनों को बस देखते रहेंगे,उसे मूर्तरूप नहीं दे पायेंगे और ऐसा संभव हो नहीं सकता। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि हमें स्वयं ही अपना कर्तव्य। निभाते रहना होगा,हमें हिन्दी के लिए कार्य करते रहना होगा,क्या खोया क्या पाया पर चर्चा करेंगे तो चर्चा ही करते रहेंगे।
मैं तो अपने ब्लॉग्स के माध्यम से हिन्दीं और हिन्दी साहित्य से हिन्दी का संदेश विश्व के पाठकों तक पहुँचाता रहता हूँ,हिन्दी वर्ग पहेली पर विशेष कार्य कर रहा हूँ,पिछले वर्ष नवम्बर से मैं अरब देश शारजाह से नियंत्रित और सम्पादित की जा रही प्रख्यात लेखिका कवयित्री श्रीमती पूर्णिमा वर्मन की ई पत्रिका‘अभिव्यक्ति’ और‘अनुभूति’ से जुड़ा हुआ हूँ। अभिव्यक्ति पर मेरी हिन्दी वर्गपहेली निरंतर प्रकाशित हो रही हैं,जिसे लाखों देश और विदेशी प्रवासियों,हिन्दी पाठकों द्वारा पसंद किया जा रहा है। इसे ओन लाइन भरा जा सकता है,खेला जा सकता है। पूर्णिमा वर्मन द्वारा गद्य और पद्य पर किये जा रहे कार्य प्रशंसनीय हैं। इसी प्रकार आस्ट्रेलिया से ‘हिन्दी गौरव’,दिल्ली से 'हिन्द युग्म' अच्छा कार्य कर रहा है,इसका इंटरनेट संस्करण आप डाउनलोड कर सकते हैं,अनेकों छोटे छोटे हिदी अखबार भी अब अपना इंटरनेट संस्करण इंटरनेट पर जोड़ने लग गये हैं। ‘कविताकोश’विश्व और भारत के सर्वाधिक कवियों का एक इनसाइक्लोंपीडिया बनने जा रहा है। आप यदि कम्यूटर भाषा जानते हैं,तो इसमें अपना छोटे से छोटा योगदान दे कर हिन्दी साहित्य की अथक यात्रा में सम्मिलित हो सकते हैं।
अंत में मैं बस इतना कहूँगा कि हिन्दी का भविष्य सुंदर है,इसके संरक्षण के लिए साझा और एकल प्रयास निरंतर होते रहने चाहिए। हमें इसके लिए मानव शृंखला बनानी होगी ताकि इसका संरक्षण हो सके।
हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान।
हिन्दी को हम दें सम्मान।
हिन्दी हो जन की भाषा,
हिन्दी ही हो अपनी पहचान।।
शेष नाथद्वारा से लौटने पर-----
मैं 13 और 14 सितम्बर को हिन्दी सम्मेलन प्रयाग का अधिवेशन जो कि नाथद्वारा में आयोजित हो रहा है,सम्मिलित होने जा रहा हूँ। वहाँ मेरा यह लेख कहने पढ़ने या इस पर चर्चा करने को मिले या न मिले,पर उस दिन मैं ब्लॉग पर नहीं मिलूँगा इसलिए आइये आप मेरे वक्तव्य मेरी चर्चा को आप आज ही यहाँ अवश्य पढ़ें।
इस अधिवेशन में हिन्दी पर चर्चा का विषय है 'गत एक वर्ष में राष्ट्रभाषा हिन्दी ने क्या खोया और क्या पाया' इस विषय पर मेरा मानना है कि हिन्दी भाषा अपनी आस्था,अपनी निष्ठा खोती जा रही है,इसी पर मैं अपनी बात कहना चाहूँगा।
आंग्ल भाषा का एक शब्द है डी एन ए (डीऑक्सीरिबोनुक्यूलिक एसिड)यानि प्राणियों के शरीर में पाया जाने वाला रासायनिक गुणसूत्र,जो प्राणी के व्यक्तित्व,अस्तित्व और उत्पत्ति के सूत्र को स्थापित करने में वैज्ञानिकों की मदद करता है। जिस प्रकार कार्बन डेटा पद्धतिसे वनस्पति की उम्र और अस्तित्व के बारे में जानकारी मिलती है,उसी प्रकार डीएनए से प्राणी की। प्राणी का सूक्ष्म बाल हो या नाखून का एक टुकड़ा हो,दाँत हो या अस्थि का छोटा टुकड़ा,प्राणी के सम्पूर्ण व्याक्तित्व के बारे में जाना जा सकता है। विज्ञान इस बात को मानता है कि प्रकृति में प्रत्येक प्राणी का गुणसूत्र विद्यमान रहता है,कभी नष्ट नहीं होता और यही वज़ह है,आज मानव जाति ही नहीं सम्पूर्ण प्राणी जगत् और वनस्पाति जगत् संक्रमित है। जीवन चक्र में यही संक्रमण धीरे धीरे अपना विकराल रूप धारण करता हुआ प्रलय की ओर अग्रसर होता है और

संसार में प्रचलित सभी धर्मों में मनुष्य की मृत देह के अंत्यसंस्कार की अनेको विधियाँ प्रचलित हैं,उनका एक ही उद्देश्य है,मृत देह से फैलने वाले संक्रमण से शीघ्रतातिशीघ्र छुटकारा,लेकिन प्रश्न विचारणीय है कि हम कितना संक्रमण समाप्त कर पाते हैं। पंचतत्व में विलीन करने के लिए हमारे हिन्दू धर्म में उत्तर कर्म के प्रथम सोपान में अग्निदाह की परम्परा है,कहीं यह क्रिया तीसरे दिन सम्पन्न होती हैं,कहीं उसी दिन,कहीं दस दिन में,किन्तु सौ प्रतिशत भस्मीभूत नहीं हो पाती,यह सत्य है,विवाद या तर्क का विषय नहीं है। उसी से संक्रमण आज तक विद्यमान है और इसका प्रभाव मनुष्य की प्रकृति,मानव समाज,चराचर जगत् पर किसी न किसी रूप में दिखाई दे रहा है और हम उसे सुख दु:ख,वैर,वैमनस्य,विभिन्न प्रकार के रोग आदि के रूप में भोग रहे हैं और भोगते जायेंगे,इससे छुटकारा नितान्त दुरूह है,क्योंकि हमने चिन्तन,मनन,ध्यान,योग,धर्म के प्रति निष्ठा खोई है। स्वच्छन्दता के आनंद में हम इतने खो गये हैं कि जब हम तिल तिल स्वयं को खो रहे हैं,हम अंतर्मुखी हो गये हैं,हम अपने समाज अपने परिवार के प्रति धीरे धीरे निष्ठा खो रहे हैं,तो भाषा के प्रति निष्ठा यदि खो रही है तो कैसा आश्चर्य ।
यह आधार,इस विषय को अथवा इसकी चर्चा को आज के मूल विषय से मैंने इसलिए जोड़ा है कि आज हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी भी संक्रमण काल से गुजर रही है। हमें स्वत हुए 64 वर्ष हो गये किंतु 64 बार भी अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति समर्पित आंदोलन या अभियान हमने नहीं छेड़े हैं।
धड़कते समाचार:मैं प्रान्तीय भाषा का विरोधी नहीं,पर हिन्दी के विकास के लिए किसी को तो नीलकंठ बनना ही होगा। क्या आज हमें दूसरा भारतेन्दु मिल सकता है या दूसरा अन्ना जो हमें गांधीवादी तरीके से हमारे देश की एक मात्र भाषा हिन्दी के लिए आन्दोलन छेड़ सके? आज देश का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला और बड़ा अखबार कहलाने का दंभ भरने वाला भास्कर समूह यदि अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में भी हिन्दी का ही समाचार पत्र प्रकाशित करता तो आज वह गर्व से कहता कि हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र है भास्कर। अखबार अब व्या्वसायिक हो गये हैं, उन्हें साहित्य नहीं विज्ञापन चाहिए। जब समर्थ ही ऐसी कोशिशें नहीं करेंगे तो हमारी राष्ट्रभाषा का भविष्य कैसा होगा, अनुमान लगाया जा सकता है। आज समाचार पत्र जन जन के हाथों में जाता है, किन्तु साहित्य कितना होता है इसमें, सिवा विज्ञापनों की भरमार और हिंसक और व्यभिचार के समाचारों के? समाचार पत्र की चर्चा मैं इसलिए कर रहा हूँ कि उत्तर प्रदेश के प्रमुख समाचार पत्र अमर उजाला से 1993 से जुड़ा रहा था, हिन्दी वर्ग पहेली के माध्यम से, किंतु आज उस पत्र में वर्ग पहेली नहीं आती।
मैं हिन्दी की शब्द यात्रा का बटोही रहा हूँ । शब्द ब्रह्म के सुंदर स्वरूप अक्षर से आरंभ हुई मेरी हिन्दी के चहुँमुखी विकास की यात्रा में मेरी भावांजलि और 1993 से आरंभ किये यज्ञ की पहली आहुति मैंने दी और वह यज्ञ अभी भी अनवरत चल रहा है, और चलता रहेगा, क्योंकि मेरी इच्छा है कि मेरे रहते मेरी प्रिय भाषा हिन्दी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली पहली भाषा बन जाय और मैं गर्व कर सकूँ कि इसमें मेरा भी अवदान है, इस यज्ञ में मेरी भी समिधा की एक आहुति है।हिंद की शान है हिन्दी ...:हिंदी की सुरभि को सार्वभौम फैलाने वाले पुरोधा भारतेंदु हरिश्चन्द्र की पिछले दिनों 161वीं जयंति हमने मनाई है। निज भाषा के लिए सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देने वाले इस महामहोपाध्याय का नारा था ‘हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान’ विद्वत्समाज इसकी अपनी अपनी तरह से विवेचना,चर्चा करता है।
आज केवल इसी वाक्य,इस सूक्ति,इस नारे पर ही थोड़ी चर्चा कर मैं विराम चाहूँगा,क्योंकि हम हर वर्ष इस पुरोधा की जयंति मनाते हैं,हिन्दी के विकास के लिए संकल्प लेते हैं,किन्तु श्मसान में पैदा हुए क्षणिक वैराग्य की तरह श्मसान से बाहर आते ही हम फिर उसी माया-मोह,दुनियादारी में खो जाते हैं,यही हश्र हमारी हिन्दी का हुआ है।DIL ka RAJ: Hindi positions and plight:हम हिन्दुस्ता्न में हिन्दू,हिन्दी और हिन्दुस्तान तीनों को अलग अलग नज़रिये से देखते हैं,इसलिए आस्था खो रहे हैं। भारतेन्दु ने इन तीनो की जो विवेचना की थी वह कि,जो हिन्दी बोले वह हिन्दुस्तानी,जो हिन्दी बोले वो ही हिन्दू है,देश की पहचान हिन्दी हो,हिन्दू नहीं। हिन्दी है तो हिन्दू हैं और हिन्दी है तो हिन्दुस्तान है। अन्य देशों के लोग हिन्दू को नहीं,हिन्दी को जानते हैं,क्योंकि हिन्दुस्तान की पहचान वहाँ हिन्दू से नहीं,हिन्दी से है। हिन्दी-चीनी भाई-भाई। चीनी कौन? जो चीन के वासी हैं,हिन्दी कौन?हिन्दी वो,जो हिन्दुस्तान में रहते हैं। हिन्दी हैं---हिन्दी हैं हम,वतन है,हिन्दोस्ताँ हमारा---सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा। यहाँ पर भी हिन्दवासियों को हिन्दी कहा गया है।
हाड़ौती की एक कहावत है- ‘घर का जोगी जोगणा,आण गाँव का सिद्ध’विदेश में रह कर अपने देश की महत्ता का अहसास होता है और यही कारण है कि विदेशों मे वह न मुसलमान है,न सिख,न ईसाई,न गुजराती,न बंगाली,वहाँ वह सिर्फ हिन्दुस्तानी है,इसीलिए वहाँ हिन्दी को एक अहम स्थान प्राप्त है। पर हम अपने देश में हिन्दी के प्रति आस्था खो रहे हैं। हमारे यहाँ जब तक प्रान्तीय भाषाओं के वर्चस्व की बातें होंगी,हमारी हिन्दी अपनी वास्तविक जगह नहीं बना पायेगी। राजस्थान में राजस्थानी भाषा के लिए आंदोलन हो रहे हैं,लेकिन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की तुलना में राजस्थान हिन्दी में पिछड़ा हुआ है। राजस्थान में हिंदी जन जन में अपनी आस्था नहीं बना पाई है। यहाँ बाजारों में अशुद्ध हिंदी पढ़ने देखने को मिलती है, सरकारी गैर सरकारी महकमों में आंग्ल भाषा का वर्चस्व यथावत बना हुआ है। पहले दक्षिण में हिन्दी का अपमान हुआ, पिछले वर्ष महाराष्ट्र,विशेषकर देश की सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी मुंबई में इसकी अवहेलना,दंगे फसाद हुए। भाषावाद,प्रान्तीयतावाद,आरक्षण और सर्वोपरि आतंकवाद से हमको देश के प्रमुख मुद्दों के कारण हम हिन्दी के बारे में सोच ही नहीं पाते। इसी कारण अनेकों समस्यायें विकराल रूप ले रही हैं। पिछले साल से आज तक हम इन्हीं समस्याओं से जूझते रहे हैं। ।
पूरा देश हिन्दी के लिए एकजुट नहीं होगा तब तक हम अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी के लिए देख रहे सपनों को बस देखते रहेंगे,उसे मूर्तरूप नहीं दे पायेंगे और ऐसा संभव हो नहीं सकता। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि हमें स्वयं ही अपना कर्तव्य। निभाते रहना होगा,हमें हिन्दी के लिए कार्य करते रहना होगा,क्या खोया क्या पाया पर चर्चा करेंगे तो चर्चा ही करते रहेंगे।
मैं तो अपने ब्लॉग्स के माध्यम से हिन्दीं और हिन्दी साहित्य से हिन्दी का संदेश विश्व के पाठकों तक पहुँचाता रहता हूँ,हिन्दी वर्ग पहेली पर विशेष कार्य कर रहा हूँ,पिछले वर्ष नवम्बर से मैं अरब देश शारजाह से नियंत्रित और सम्पादित की जा रही प्रख्यात लेखिका कवयित्री श्रीमती पूर्णिमा वर्मन की ई पत्रिका‘अभिव्यक्ति’ और‘अनुभूति’ से जुड़ा हुआ हूँ। अभिव्यक्ति पर मेरी हिन्दी वर्गपहेली निरंतर प्रकाशित हो रही हैं,जिसे लाखों देश और विदेशी प्रवासियों,हिन्दी पाठकों द्वारा पसंद किया जा रहा है। इसे ओन लाइन भरा जा सकता है,खेला जा सकता है। पूर्णिमा वर्मन द्वारा गद्य और पद्य पर किये जा रहे कार्य प्रशंसनीय हैं। इसी प्रकार आस्ट्रेलिया से ‘हिन्दी गौरव’,दिल्ली से 'हिन्द युग्म' अच्छा कार्य कर रहा है,इसका इंटरनेट संस्करण आप डाउनलोड कर सकते हैं,अनेकों छोटे छोटे हिदी अखबार भी अब अपना इंटरनेट संस्करण इंटरनेट पर जोड़ने लग गये हैं। ‘कविताकोश’विश्व और भारत के सर्वाधिक कवियों का एक इनसाइक्लोंपीडिया बनने जा रहा है। आप यदि कम्यूटर भाषा जानते हैं,तो इसमें अपना छोटे से छोटा योगदान दे कर हिन्दी साहित्य की अथक यात्रा में सम्मिलित हो सकते हैं।
अंत में मैं बस इतना कहूँगा कि हिन्दी का भविष्य सुंदर है,इसके संरक्षण के लिए साझा और एकल प्रयास निरंतर होते रहने चाहिए। हमें इसके लिए मानव शृंखला बनानी होगी ताकि इसका संरक्षण हो सके।
हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान।
हिन्दी को हम दें सम्मान।
हिन्दी हो जन की भाषा,
हिन्दी ही हो अपनी पहचान।।
शेष नाथद्वारा से लौटने पर-----
लेबल: गीतिका, आलेख, कविता, मुक्तक, गीत, नवगीत,
राष्ट्रभाषा,
हिन्दी,
हिन्दुस्तान
10 सितंबर 2011
पत्थरों का शहर
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यह पत्थरों का शहर है

बेजान बुत सा खड़ा इसके सीने में
भरा गुबारों का ज़हर है।
यह पत्थरों का शहर है।।
यहाँ पलती है ज़िन्दगी नासूर सी।
यहाँ जलती है ज़िन्दगी काफ़ूर सी।
यहाँ बहकती है ज़िन्दगी सुरूर सी।
यहाँ तपती है ज़िन्दगी तंदूर सी।
अहसान फ़रामोश इस शहर का अजीबो ग़रीब जुनून है।
पत्थरों के सीने में यहाँ हरदम उबलता ख़ून है।
सूरज के ख़ौफ़ से झुलसता, तपता
यह अंगारों का शहर है।
यह पत्थरों का शहर है।।
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6 सितंबर 2011
नवगीत की पाठशाला: २५. यह शहर
नवगीत की पाठशाला: २५. यह शहर: तिनका तिनका जोड़ रहा इंसाँ यहाँ शाम-सहर आतंकी साये में पीता हालाहल यह शहर अनजानी सुख की चाहत संवेदनहीन ज़मीर इन्द्रहधनुषी अभिलाषाय...
4 सितंबर 2011
गणेशाष्टक
धरा सदृश माता है, माँ की परिक्रमा कर आये।
एकदन्त, गणपति, गणनायक, प्रथम पूज्य कहलाये।।1।।
लाभ-क्षेम दो पुत्र, ऋद्धि-सिद्धि के स्वामि गजानन।
अभय और वर मुद्रा से, करते कल्याण गजानन।।2।।
मानव-देव-असुर सब पूजें, त्रिदेवों ने गुण गाये।
धर त्रिपुण्ड मस्तक पर शशिधर, भालचंद्र कहलाये।।3।।
असुर-नाग-नर-देव स्थापक, चतुर्वेद के ज्ञाता।
जन्म चतुर्थी, धर्म, अर्थ और काम, मोक्ष के दाता।।4।।
पंचदेव और पंचमहाभूतों में प्रमुख कहाये।
बिना रुके लिख महाभारत, महा आशुलिपिक कहलाये।।5।।
अंकुश-पाश-गदा-खड्.ग-लड्डू-चक्र षड्भुजा धारे।
मोदक प्रिय, मूषक वाहन प्रिय, शैलसुता के प्यारे।।6।
सप्ताक्षर ‘गणपतये नम: सप्तचक्र मूलाधारी।
विद्या वारिधि, वाचस्पति महामहोपाध्याय अनुसारी।।7।।
छंदशास्त्र के अष्टगणाधिष्ठाता अष्ट विनायक।
’आकुल’ जय गणेश, गणपति हैं सबके कष्ट निवारक।।8।।

एकदन्त, गणपति, गणनायक, प्रथम पूज्य कहलाये।।1।।
लाभ-क्षेम दो पुत्र, ऋद्धि-सिद्धि के स्वामि गजानन।
अभय और वर मुद्रा से, करते कल्याण गजानन।।2।।
मानव-देव-असुर सब पूजें, त्रिदेवों ने गुण गाये।
धर त्रिपुण्ड मस्तक पर शशिधर, भालचंद्र कहलाये।।3।।
असुर-नाग-नर-देव स्थापक, चतुर्वेद के ज्ञाता।
जन्म चतुर्थी, धर्म, अर्थ और काम, मोक्ष के दाता।।4।।
पंचदेव और पंचमहाभूतों में प्रमुख कहाये।

बिना रुके लिख महाभारत, महा आशुलिपिक कहलाये।।5।।
अंकुश-पाश-गदा-खड्.ग-लड्डू-चक्र षड्भुजा धारे।
मोदक प्रिय, मूषक वाहन प्रिय, शैलसुता के प्यारे।।6।
सप्ताक्षर ‘गणपतये नम: सप्तचक्र मूलाधारी।
विद्या वारिधि, वाचस्पति महामहोपाध्याय अनुसारी।।7।।
छंदशास्त्र के अष्टगणाधिष्ठाता अष्ट विनायक।
’आकुल’ जय गणेश, गणपति हैं सबके कष्ट निवारक।।8।।
3 सितंबर 2011
'आकुल' को 'साहित्य श्री' सम्मानोपाधि। परियावाँ में भी वे कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार श्री रघुनाथ मिश्र के साथ्ा सम्मानित होंगे।
कोटा के जनवादी कवि, संगीतकार, साहित्यकार, लेखक, सम्पादक क्रॉसवर्ड विजर्ड गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल' को राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव ट्रस्ट, सिहोरा, जबलपुर म0प्र0 द्वारा उनकी हिन्दी साहि
त्य सेवा व सम्पादन कार्य के लिए 2011 की 'साहित्य श्री' सम्मानोपाधि प्रदान की है।
श्री 'आकुल' के साथ कोटा के ही वरिष्ठ साहित्यकार श्री रघुनाथ मिश्र को साहित्यिक, सांस्कृतिक कला संगम अकादमी परियावाँ, प्रतापगढ़ उ0प्र0 द्वारा वर्ष 2011 के लिए सम्मान के लिए भी चयन किया गया है। 30 अक्टूबर 2011 को आयोजित होने जा रहे इस भव्य समारोह में श्री 'आकुल' को 'विवेकानन्द सम्मान' से विभूषित किया जायेगा और श्री मिश्रा को 'विद्या वाचस्पित (मानद)' से सम्मानित किया जायेगा। अकादमी के सचिव श्री वृन्दावन त्रिपाठी रत्नेश ने पत्र एवं दूरभाष से सम्पर्क कर दोनों को चयन की
सूचना दी और बधाई दी। उन्होंने बताया कि इस भव्य समारोह अखिल भारतीय स्तर के लगभग 40 से 50 साहित्यकारों को प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाता है। इस वर्ष भी 100 से अधिक साहित्यकारों को सम्मानित किया जायेगा। सभी जगह आमंत्रण पत्र भिजवा दिये गये हैं ओर स्वीकृतियाँ आने लग गयी हैं। समारोह में हिन्दी गरिमा सम्मान, कला मार्तण्ड, हिन्दी सेवी सम्मान, साहित्य मार्तण्ड, पत्रकार मार्तण्ड, विद्या वाचस्पति, विद्या वारिधि, साहित्य महामहापाध्याय, रोहित कुमार माथुर स्मृति सम्मान, पं0 जगदीश नारायण त्रिपाठी स्मृति सम्मान, पं0 जगदीश नारायण त्रिपाठी स्मृति सम्मान, प0 दुर्गाप्रसाद शुक्ल स्मृति सम्मान, सुश्री सरस्वती सिंह सुमन स्मृति सम्मान और कबीर सम्मान भी दिये जायेंगे। श्री भट्ट और श्री मिश्रा 29 अक्टूबर को कोटा से परि
यावाँ के लिए रवाना होंगे। श्री त्रिपाठी ने बताया कि सम्मारोह की भागीदारी सहयोगी संस्था तारिका विचार मंच करछना इलाहाबाद और विंध्यवासिनी हिन्दी विकास संस्थ्ज्ञान नई दिल्ली भी साहित्यकारों का सारस्वत सम्मान करेंगी।
श्री भट्ट और मिश्रा को इस सम्मान के लिए बधाइयों का ताँता लगा हुआ है। भट्ट को उनकी पुस्तक 'जीवन की गूँज' और श्री मिश्रा को उनकी पुस्तक 'सोच ले तू किधर जा रहा है' के लिए उनकी साहित्य सेवा के लिए सम्मानित किया जा रहा है।

श्री 'आकुल' के साथ कोटा के ही वरिष्ठ साहित्यकार श्री रघुनाथ मिश्र को साहित्यिक, सांस्कृतिक कला संगम अकादमी परियावाँ, प्रतापगढ़ उ0प्र0 द्वारा वर्ष 2011 के लिए सम्मान के लिए भी चयन किया गया है। 30 अक्टूबर 2011 को आयोजित होने जा रहे इस भव्य समारोह में श्री 'आकुल' को 'विवेकानन्द सम्मान' से विभूषित किया जायेगा और श्री मिश्रा को 'विद्या वाचस्पित (मानद)' से सम्मानित किया जायेगा। अकादमी के सचिव श्री वृन्दावन त्रिपाठी रत्नेश ने पत्र एवं दूरभाष से सम्पर्क कर दोनों को चयन की


श्री भट्ट और मिश्रा को इस सम्मान के लिए बधाइयों का ताँता लगा हुआ है। भट्ट को उनकी पुस्तक 'जीवन की गूँज' और श्री मिश्रा को उनकी पुस्तक 'सोच ले तू किधर जा रहा है' के लिए उनकी साहित्य सेवा के लिए सम्मानित किया जा रहा है।
2 सितंबर 2011
ज्ञान सामर्थ्य 1 - हिन्दी वर्गपहेली
इंटरनेट पर हिन्दी वर्ग पहेलियाँ देखी हैं !!!!
मेरी पुस्तक का अवलोकन करें। 114 पृष्ठीय इस पुस्तक में 50 वर्ग पहेलियाँ है। पूरा वर्जन देखने के लिए चित्र पर डबल क्लिक करें या click to launch the full edition पर क्लिक करें। मेरी वर्ग पहेली आप http://abhivyakti-hindi.org पर भी देख सकते है और वहाँ ऑन लाइन खेल भी सकते हैं। मेरी पुस्तक डाउनलोड करें और घर में जी भर कर आनंद लें। यह पुस्तक आपको कैसी लगी अपने विचार अवश्य प्रेषित करें। इसका दूसरा संस्करण अगले माह आपके सामने होगा।
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2 ग़ज़लें
1
करम कर तू ख़ुदा को रहमान लगता है।
कोई नहीं तिरा मिरा जो मिहरबान लगता है।
यही पैग़ाम गीता में हदीस में है पाया,
ग़ुमराह किया हुआ वो इंसान लगता है।
आदमी-आदमी की फ़ितरत मे क्यूँ है फ़र्क,
सबब इसका सोहबत-ओ-खानपान लगता है।
तिरी नज़र में क्यूँ है अपने पराये का शक़,
इक भी नहीं शख़्स जो अनजान लगता है।
उसने सबको एक ही तो दिया था चेहरा,
चेहरे पे चेहरा डाले क्यों शैतान लगता है।
कौनसी ग़लती हुई, इसे क्या नहीं दिया,
ख़ुदा इसीलिए हैराँ औ परीशान लगता है।
उसकी दी नैमत है अहले ज़िन्दगी 'आकुल',
जाने क्यूँ कुछ लोगों को इहसान लगता है।
2
दरख़्त धूप को साये में ढाल देता है।
मुसाफ़िर को रुकने का ख़याल देता है।
पत्तों की ताल हवा के सुरों झूमती,
शाखों पे परिन्दा आशियाँ डाल देता है।
पुरबार में देखो उसकी आशिक़ी का जल्वा
सब कुछ लुटा के यक मिसाल देता है।
मौसिमे ख़िज़ाँ में उसका बेख़ौफ़ वज़ूद,
फ़स्ले बहार आने की सूरते हाल देता है।
इंसान बस इतना करे तो है काफ़ी,
इक क़लम जमीं पे गर पाल देता है।
ऐ दरख़्त तेरी उम्रदराज़ हो 'आकुल',
तेरे दम पे मौसिम सदियाँ निकाल देता है।
पुरबार-फलों से लदा पेड़, मौसिमे ख़िज़ाँ- पतझड़ की ऋतु
फ़स्ले बहार- बसंत ऋतु, सूरते हाल- ख़बर
क़लम- पेड़ की डाल,पौधा उम्रदराज- चिरायु
करम कर तू ख़ुदा को रहमान लगता है।
कोई नहीं तिरा मिरा जो मिहरबान लगता है।
यही पैग़ाम गीता में हदीस में है पाया,
ग़ुमराह किया हुआ वो इंसान लगता है।
आदमी-आदमी की फ़ितरत मे क्यूँ है फ़र्क,
सबब इसका सोहबत-ओ-खानपान लगता है।
तिरी नज़र में क्यूँ है अपने पराये का शक़,
इक भी नहीं शख़्स जो अनजान लगता है।
उसने सबको एक ही तो दिया था चेहरा,
चेहरे पे चेहरा डाले क्यों शैतान लगता है।
कौनसी ग़लती हुई, इसे क्या नहीं दिया,
ख़ुदा इसीलिए हैराँ औ परीशान लगता है।
उसकी दी नैमत है अहले ज़िन्दगी 'आकुल',
जाने क्यूँ कुछ लोगों को इहसान लगता है।
2
दरख़्त धूप को साये में ढाल देता है।
मुसाफ़िर को रुकने का ख़याल देता है।
पत्तों की ताल हवा के सुरों झूमती,
शाखों पे परिन्दा आशियाँ डाल देता है।
पुरबार में देखो उसकी आशिक़ी का जल्वा
सब कुछ लुटा के यक मिसाल देता है।
मौसिमे ख़िज़ाँ में उसका बेख़ौफ़ वज़ूद,
फ़स्ले बहार आने की सूरते हाल देता है।
इंसान बस इतना करे तो है काफ़ी,
इक क़लम जमीं पे गर पाल देता है।
ऐ दरख़्त तेरी उम्रदराज़ हो 'आकुल',
तेरे दम पे मौसिम सदियाँ निकाल देता है।
पुरबार-फलों से लदा पेड़, मौसिमे ख़िज़ाँ- पतझड़ की ऋतु
फ़स्ले बहार- बसंत ऋतु, सूरते हाल- ख़बर
क़लम- पेड़ की डाल,पौधा उम्रदराज- चिरायु
1 सितंबर 2011
सान्निध्य सेतु: यह कोई नई चाल तो नहीं !!!!!
सान्निध्य सेतु: यह कोई नई चाल तो नहीं !!!!!: भ्रष्ट लोग अपने बचाव के लिए किसी भी हद तक गुज़र सकते हैं। अन्ना ने अनशन तोड़ दिया, ठीक है, अग्निवेश की असलियत सामने आई, चलो यह भी ठी...
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