55.
गीतिका
छंद-
रजनी
मापनी-
2122
2122 2122 2
पदांत-
क्यों हो गया जाने.
समांत-
अर
खत्म अब
ईश्वर का’
डर क्यों हो गया जाने.
लुट रहीं
हैं बच्चियाँ हद हो गयी अब तो,
आदमी अब
जानवर क्यों हो गया जाने.
कम हुआ
मिलना मिलाना ईद दीवाली,
यारबाजी
में बसर क्यों हो गया जाने.
है छिपा
मन में सभी के चोर है बैठा,
संसकारों
से इतर क्यों हो गया जाने.
दो तरह
की जिंदगी को जी रहा ‘आकुल’,
बात में
इतना मुखर क्यों हो गया जाने.
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