धरा सदृश माता है, माँ की परिक्रमा कर आये।
एकदन्त, गणपति, गणनायक, प्रथम पूज्य कहलाये।।1।।
लाभ-क्षेम दो पुत्र, ऋद्धि-सिद्धि के स्वामि गजानन।
अभय और वर मुद्रा से, करते कल्याण गजानन।।2।।
मानव-देव-असुर सब पूजें, त्रिदेवों ने गुण गाये।
धर त्रिपुण्ड मस्तक पर शशिधर, भालचंद्र कहलाये।।3।।
असुर-नाग-नर-देव स्थापक, चतुर्वेद के ज्ञाता।
जन्म चतुर्थी, धर्म, अर्थ और काम, मोक्ष के दाता।।4।।
पंचदेव और पंचमहाभूतों में प्रमुख कहाये।
बिना रुके लिख महाभारत, महा आशुलिपिक कहलाये।।5।।
अंकुश-पाश-गदा-खड्.ग-लड्डू-चक्र षड्भुजा धारे।
मोदक प्रिय, मूषक वाहन प्रिय, शैलसुता के प्यारे।।6।
सप्ताक्षर ‘गणपतये नम: सप्तचक्र मूलाधारी।
विद्या वारिधि, वाचस्पति महामहोपाध्याय अनुसारी।।7।।
छंदशास्त्र के अष्टगणाधिष्ठाता अष्ट विनायक।
’आकुल’ जय गणेश, गणपति हैं सबके कष्ट निवारक।।8।।
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