20 जुलाई 2024

मिले पकोड़ों के कुनबे से

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/2food/garam_pakode/geet/Aakul.htm

                        मिले पकौड़ों के कुनबे से

 
 मिले पकौड़ों के कुनबे से गए एक पिकनिक
सुनी बात रुक कर के चुपके से उनकी चिकचिक

गोभी, मिर्ची, मटर, पनीर
आलू, की थी अपनी पीर
चटनी हरी, टमैटो सॉस
फुलबड़ि‍यों की भी थी भीड़
बढ़े हाथ लेने को मचले मिली खुशी हार्दिक

दर्द हमारा आँसू उनके
खाए गर्मा-गर्म
नहीं सोचता है कोई क्यूँ
क्या है धर्म-अधर्म
रौरव नर्क मिला कुछ को कम कुछ को जरा अधिक

चटनी, ने भी दर्द किया फिर
बयाँ सभी के बीच
पीसा हमें निचोड़ा नीबू
सहा आँख को मींच
तुमसे मिल कर गले पिसेगें फिर दाँतों में क्विक

बच जाओ तो कहना घर या
त्योहारों शादी में
खुश रहना जीवन में करना
शोक न बरबादी में
परहित हो तो द्वंद्वयुद्ध में फिर कैसी झिकझिक

- आकुल
१ जुलाई २०२४
अनुभूति जुलाई 2024 के 'पकौड़ेे विशेषांक' में प्रकाशित गीत 


 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें