12 अक्तूबर 2014

कर्तव्‍य बोध


युवापीढ़ी को अच्‍छे और बुरे का भी हो बोध।
अपने दायित्‍वों और कर्तव्‍यों का भी हो बोध।
राष्‍ट्र विकास में जुड़ने के तब होंगे मार्ग प्रशस्‍त,
जब दृढ़ इच्‍छा-शक्ति व संकल्‍पों का भी हो बोध।

संस्‍कारों से करना होगा शुभारंभ अभिज्ञान।
निश्चित करने होंगे ध्‍येय, परिणाम और प्रतिमान।
कंटकीर्ण होंगे पथ, मौसम, समय कहाँ रुकते हैं,
सदा युगंधर पर करता है सारा जग अभिमान।

संभव है आगे बढ़ने में आएँगे अवरोध।
युवापीढ़ी को अच्‍छे और-------------------------

स्‍वच्‍छ धरा हो, निर्मल वायु, प्रदूषण मुक्‍त जहाँ हो
नंदनकानन हो पथ वृक्षाभूषण युक्‍त जहाँ हो
उपनिवेश आदर्श बनें, हो प्रजा प्रबुद्ध निष्‍णात,
प्रेम और सौहार्द बढ़ें, खर-दूषण मुक्‍त जहाँ हो।

सहज नहीं है सृजन प्रकृति के भी होंगे प्रतिरोध।
युवापीढ़ी को अच्‍छे और------------------

बीत रहा कल आज जिये जा रहे भ्रमित सा जीवन।
श्रमजीवी दल जिये जा रहे विस्‍थापित सा जीवन।
ग्राम आज भी ढाणी से हैं, कस्‍बे छोटे हलके,
शहरों में सब जिये जा रहे अभिशापित सा जीवन।

नये नये हों परिवर्तन और नये नये हों शोध। 
युवापीढ़ी को अच्‍छे और------------------

जीवन को जीने का इक उद्देश्‍य हो इक संकल्‍प।
राष्‍ट्र उन्‍नति को इक जुट हो ढूँढें एक प्रकल्‍प।
कर्माश्रयभृति ना जीवन, साहस हो सत्‍यंकार,
मातृभूमि पर न्‍योछावर अंतिम हो एक विकल्‍प।

बनना यदि कर्तव्‍य परायण सभ्‍य समर्थ प्रबोध।     
युवापीढ़ी को अच्‍छे और------------------ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें