राम नाम संकीर्तन कर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू , तर जाएगा प्राणी।।
भवसागर से भरा हलाहल, क्या बिसात है तेरी।
बिना पिये ना निकल सकेगा, क्या औकात है तेरी।
राम की नैया से ही पार, उतर पाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,------------------।।
धन्य है केवट की भक्ति, प्रभु राम के पैर धुलाए।
धन्य है शबरी की भक्ति, प्रभु राम को बेर खिलाए।
भज मन राम धन्य जीवन तू, कर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
राम भक्त हनुमान हुए हैं, अमर है जिनकी गाथा।
जिनके हृदय बिराजे राम, लखन और सीता माता।
हृदय बसा श्री राम जपा कर, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
घर भेदी ने लंका ढाई, ये दुनिया ने जाना।
रामराज्य आया घर घर वहाँ, क्या सबने ये जाना।
भक्त विभीषण सा बन जा तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
व़न-वन गाँव-गाँव घूमे, रघुवर ने अलख जगाई।
नर, नारी, पक्षी, पशु सबको, धर्म की राह बताई।
ऐसी भक्ति कर भवसागर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
मोह में प्राण गये दशरथ के, अहं से रावण हारा।
पत्थर बनी अहल्या तारी, बाली भी संहारा।
रोम-रोम श्रीराम बसेंगे, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
क्रोध, अहं, मोह बर्बरता ,से बल सुबुद्धि भरमाई।
शिवधुन उठा न अंगद पैर, न लंका ही बच पाई।
क्षणभंगुर सा जीवन पावन, कर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर-------------------।।
ऱाम नाम संकीर्तन कर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया करतू, तर जाएगा प्राणी।।
राम से नेह लगाया कर तू , तर जाएगा प्राणी।।
भवसागर से भरा हलाहल, क्या बिसात है तेरी।
बिना पिये ना निकल सकेगा, क्या औकात है तेरी।
राम की नैया से ही पार, उतर पाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,------------------।।
धन्य है केवट की भक्ति, प्रभु राम के पैर धुलाए।
धन्य है शबरी की भक्ति, प्रभु राम को बेर खिलाए।
भज मन राम धन्य जीवन तू, कर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
राम भक्त हनुमान हुए हैं, अमर है जिनकी गाथा।
जिनके हृदय बिराजे राम, लखन और सीता माता।
हृदय बसा श्री राम जपा कर, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
घर भेदी ने लंका ढाई, ये दुनिया ने जाना।
रामराज्य आया घर घर वहाँ, क्या सबने ये जाना।
भक्त विभीषण सा बन जा तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
व़न-वन गाँव-गाँव घूमे, रघुवर ने अलख जगाई।
नर, नारी, पक्षी, पशु सबको, धर्म की राह बताई।
ऐसी भक्ति कर भवसागर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
मोह में प्राण गये दशरथ के, अहं से रावण हारा।
पत्थर बनी अहल्या तारी, बाली भी संहारा।
रोम-रोम श्रीराम बसेंगे, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
क्रोध, अहं, मोह बर्बरता ,से बल सुबुद्धि भरमाई।
शिवधुन उठा न अंगद पैर, न लंका ही बच पाई।
क्षणभंगुर सा जीवन पावन, कर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर-------------------।।
ऱाम नाम संकीर्तन कर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया करतू, तर जाएगा प्राणी।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें