फेसबुक साहित्य समूह 'मुक्तक लोक' का मुक्तक लोक तरंगिनी छंद समारोह 148 में ''छंद श्री'' सम्मान से सम्मानित किया गया. वह छंद (रोला छंद) जिस पर रचना को सम्मान मिला, ''रोला छंद गीतिका'' यहाँ प्रस्तुत है-
गीतिका
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प्रदत्त छंद- रोला (सम मात्रिक) ‘छंद श्री’ के लिए रचना
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प्रदत्त छंद- रोला (सम मात्रिक) ‘छंद श्री’ के लिए रचना
मुक्तक-लोक-तरंगिनी छंद
समीक्षा समारोह<>10.04.2017
मापनी 11 // 13 चरणांत में गुरु/वाचिक
443 या 3323 // 32332 या 3244
पदांत- मौन रहेंगे
समांत- एँगे
मापनी 11 // 13 चरणांत में गुरु/वाचिक
443 या 3323 // 32332 या 3244
पदांत- मौन रहेंगे
समांत- एँगे
जीवन है विषकूट, पियेंगे मौन रहेंगे.
घात और प्रतिघात, सहेंगे मौन रहेंगे.
घात और प्रतिघात, सहेंगे मौन रहेंगे.
कलियुग के अवसाद, ग्रहण में इस जगती को,
और धधकता देख, जलेंगे मौन रहेंगे.
और धधकता देख, जलेंगे मौन रहेंगे.
हम जनपथ की राह, बिलखते लोकतंत्र में,
जन-जन का बलिदान, करेंगे मौन रहेंगे.
जन-जन का बलिदान, करेंगे मौन रहेंगे.
लालच, मत्सर भूत, नाचता जिनके सिर पर
दुर्योधन हर बार, पलेंगे मौन रहेंगे.
दुर्योधन हर बार, पलेंगे मौन रहेंगे.
काक-बया का बैर, छछूँदर-साँप विवशता,
शर शैया पर भीष्म, जिएँगे मौन रहेंगे.
शर शैया पर भीष्म, जिएँगे मौन रहेंगे.
छद्म, द्यूत, बल, घात, चाल हो शकुनी जैसी
अवसर पाते दाँव, चलेंगे मौन रहेंगे.
अवसर पाते दाँव, चलेंगे मौन रहेंगे.
लोकतंत्र में भ्रष्ट, बिना कब चलता शासन,
भ्रष्टाचारी और, बढ़ेंगे मौन रहेंगे.
भ्रष्टाचारी और, बढ़ेंगे मौन रहेंगे.
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